उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘देखिए काका! मैं अपनी माँ को यह कहकर यहाँ लाया हूँ कि मैं आपकी अनुमति से राधा से विवाह कर ही जाऊँगा। यहाँ आकर यह पता चला है कि आप तो राजी ही हैं। मुझकों केवल राधा को मनाना है। मैं उसको राजी करने का यत्न करना चाहता हूँ। आप आशीर्वाद दें कि मैं सफल हो सकूँ।’’
रामाधार ने पूछ लिया, ‘‘क्या करोगे उसको मनाने के लिए?’’
‘‘सत्याग्रह।’’
‘‘वह क्या होता है? कैसे किया जाता है वह?’’
‘‘जैस महात्मा गांधी ने चम्पारण में किया था। मैं आपके द्वार पर ‘अनशन’ कर बैठ जाऊँगा।’’
‘‘तो तुम हमको मर जाने की धमकी दोगे?’’
‘‘यह धमकी नहीं, काका! यह तो तपस्या होगी। जैसे पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए की थी। आजकल कलियुग है ना! अब पुरुष पत्नी को पाने के लिए तपस्या करेगा।’’
‘‘जब तुम मरने की धमकी नहीं देते तो ठीक है। जैसे मन में आए करो।’’
‘‘मैं आपसे यह आशीर्वाद चाहता हूँ कि यदि वह मुझको स्वीकार कर लेगी तो आप बीच में बाधा नहीं खड़ी करेंगे।’’
‘‘वह अभी वयस्क नहीं है। यदि कुछ भूल करने लगेगी तो यह मेरा कर्तव्य है कि मैं उसका पथ-प्रदर्शन करूँ।’’
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