उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘तो मुझको यह भी यत्न करना पड़ेगा कि आप भी उसका मुझको वरना स्वीकार कर लें। मैं ऐसा भी करने का यत्न करूँगा।’’
रामाधार चुप रहा। उसको यह समझ न आया था कि शिवकुमार कैसे यत्न करेगा।
राधा को शर्मिष्ठा का आना तो तुरन्त पता चल गया था। जब शर्मिष्ठा घर में प्रविष्ठ हुई थी तो वहीं घर की ड्योढ़ी में बैठी चरखा कात रही थी। उसके सामने शारदा बैठी अपने लड़के को खिलौनों से खिला रही थी।
शर्मिष्ठा भीतर आयी तो उसने राधा को देख आवाज दे दी, ‘‘राधा बेटी!’’
‘‘ओह! मौसी? अब यहाँ किसलिए आयी हो?’’
‘‘बेटी! तुमको ले चलने के लिए। तुम्हारी माँ कहाँ है?’’
‘‘माँ आराम कर रही है। बैठो। यह मेरी भाभी है। भाभी माँ के तुल्य ही होती है।’’
‘‘शर्मिष्ठा बैठ गयी। राधा ने उसका ध्यान छोड़ पुनः चरखा कातना आरम्भ कर दिया। शारदा ने कहा, ‘‘जल पिएँगे? भोजन किया है अथवा नहीं?’’
‘‘भोजन हम कर आए हैं। मैं यहाँ पानी पीने नहीं आयी। मैं तो दूध पीने के लिए आयी हूँ।’’
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