उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
पहले तो रामाधार ने इसको एक ढोंग-मात्र समझा। शिवकुमार ने चौबीस घण्टे एक बार दूध पीना आरम्भ रखा। दिन-रात, जब तक वह जागता रहता, भगवती का जाप करता था।
तीसरे दिन रामाधार को चिन्ता लगी। उसके मन में यह भय समा गया कि कहीं उसके द्वार पर ब्रह्म-हत्या न हो जाए। घर में इस विषय पर चर्चा होने लगी थी। इस चर्चा का प्रभाव गाँव में भी पड़ा। लोग इस लड़के को देखने के लिए आने लगे थे। सिवाय मल-मूत्र त्यागने अथवा स्नानादि के, वह वहीं आसन पर बैठा रहता था। उसके होंठों के फड़कने ये यह अनुमान होता था कि वह कुछ जप रहा है। रात को तीन-चार घण्टे मध्याह्न को दो घण्टे वह वहीं लेट जाता था।
पाँचवे दिन ज्ञानेन्द्रदत्त वहाँ आ पहुँचा। अपनी पत्नी से शिवकुमार की यह योजना सुन वह लड़के का मुख देखता रह गया। वह रामाधार से मिला और लड़के की भूल और मूर्खता की बात कर, लड़की को राजी करने की प्रेरणा करने लगा।
राधा जब क्रोध से शान्त हुई, तो वह अपने क्रोध करने पर लज्जा अनुभव करने लगी थी। उसने अपने को हीन-तपस्या मान, गीता का पाठ आरम्भ कर दिया। वह संस्कृत के श्लोकों का अर्थ भली-भाँति जानती थी। इस कारण वह केवल श्लोकों का ही पाठ करती थी। लगभग छः घण्टे में एक बार समाप्त होता था। एक बार के पाठ समाप्त करने के पश्चात् वह कुछ विश्राम करती और फिर पाठ आरम्भ कर देती। रामाधार ने उससे पूछ लिया, ‘‘राधा! तुम किस वस्तु की प्राप्ति के लिए अनुष्ठान आरम्भ कर बैठी हो?’’
‘‘पिताजी!’’ राधा ने उत्तर दिया, ‘‘मैंने क्रोध से बहुत अनर्गल बातें कह डाली थीं। उस क्रोध और उससे मन पर होने वाले प्रभाव को मिटाने के लिए यह सब कर रही हूँ।’’
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