उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
रामाधार क्रोध-शान्ति के पश्चात् विवाह की अनुमति की आशा करता था। इस पर भी उसने इस विषय में कुछ नहीं पूछा। वह चाहता था कि जो कुछ भी होना है, वह स्वाभाविक और भगवान् की प्रेरणा से ही होना चाहिए।
ज्ञानेन्द्रदत्त को भी उसने कह दिया, ‘‘लड़के ने लड़की का अपमान कर दिया है। उसके प्रतिकार से वह जप कर अपने मन की शुद्धि कर रहा है। लड़की ने आपकी पत्नी को एक-दो कटु वचन कह दिए थे, वह उसका मार्जन कर रही है। मैं इससे हस्तक्षेप नहीं कर सकता। वह बेचारी जीवन चलाने के लिए दो-चार ग्रास भोजन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं ले रही है।’’
शारदा बीच-बीच में राधा से पूछती थी, ‘‘राधा बहन! क्या यह मन की शुद्धि विवाह की स्वीकृति में समाप्त होगी?’’
‘‘इन दोनों बातों से सम्बन्ध है क्या?’’
‘‘है तो। जब चित्त शुद्ध हो जाएगा, तब उसमें इस क्रोध के स्थान पर प्रेम, सहानुभूति और सुहृदयता उत्पन्न हो जायेगी। इन गुणों की उपस्थिति में उसकी तपस्या अपना प्रभाव जमायेगी।’’
‘‘मैं परमात्मा से प्रेरणा लेने का यत्न कर रही हूँ। शुद्ध अन्तःकरण से उसकी प्रेरणा समाप्त हो सकेगी।’’
शारदा को एक बात सूझी। उसने एक पत्र रजनी को लिखा और किसी परिचित को उन्नाव भेज डाक में डलवा दिया। उस पत्र में उसने गाँव की पूरी परिस्थिति का वर्णन कर दिया। शारदा ने पत्र में यह भी लिख दिया, ‘‘रजनी बहन! तुम जानती हो कि घर में तुम्हारा कितना मान है और तुम्हारा सम्मति के माने जाने की कितनी सम्भावना है। इसलिए यदि तुम एक दिन के लिए चली जाओ तो किसी प्रकार का निर्णय हो जायेगा।
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