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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इस बार सो जाने से उसका मस्तिष्क तो हल्का हो गया था, परन्तु शरीर में दुर्बलता प्रतीत होने लगी थी। वह खाट पर लेटे-लेटे ही अपनी अवस्था पर विचार करने लगी।

रजनी ने इस समय सब्जियों का जूस तैयार करवा रखा था। उसको पीने के लिए दिया। उस दिन पाठ नहीं हो सका। अगले दिन गीता के पाठ के स्थान भगवती गायत्री का जाप आरम्भ हो गया। रजनी ने इसको शुभ लक्षण समझा। उसका कहना था कि क्रोध के कारण मन्द पड़ गई बुद्धि फिर से कार्य करने लगी है। गीता के पाठ का कुछ अर्थ नहीं था। परन्तु गायत्री पाठ का विशेष प्रयोजन है। यद्यपि इस प्रयोजन को हम नहीं जानते, परन्तु है यह किसी कार्य की सिद्ध के उद्देश्य से।

इस दिन तीन घण्टे के जाप के पश्चात् उसको सब्जियों का जूस दिया गया। पश्चात् रोटी और सब्जी दी गई। इस प्रकार दो दिन व्यतीत हो गए तीसरे दिन राधा ने अकस्मात् पूछ लिया, ‘‘मौसीजी के लड़के का क्या हाल है?’’

‘‘उसको भी डॉक्टर की आवश्यकता पड़ गई थी।’’ रजनी ने कहा, ‘‘उन्नाव से एक डॉक्टर आया है और सुना है उसको भी अनीमा दिया गया है।’’

‘‘तो उसने भी जूस इत्यादि लिया है क्या?’’

‘‘कुछ औषधि मिलाकर फलों का रस दिया जा रहा है।’’

‘‘तो वह क्या चाहता है?’’

‘‘रजनी हँस पड़ी। हँसते हुए उसने कह दिया, ‘‘तो तुम नहीं जानतीं कि वह किया चाहता है?’’

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