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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘परन्तु उचित भोजन और आराम के बिना कैसे शुद्धि हो सकेगी? उठो राधा! कुछ खा-पी लो। पश्चात् दो घण्टे सोकर कुछ चिन्तन करना और भी यदि उचित समझो तो पुनः पाठ आरम्भ हो सकता है।’’

‘‘खाने को चित्त नहीं करता।’’

‘‘शौच हुआ है?’’

‘‘पाँच दिन से नहीं हुआ। आज गई थी, परन्तु हुआ नहीं। सिर में चक्कर आने से अचेत हो गई थी।’’

‘‘इसी से तो कहती हूँ कि यह अनुष्ठान ठीक नहीं। उठो! पानी में ‘सोड़ा बाई कार्ब’ घोलकर ले लो।’

रजनी स्वयं उठी और जल में ‘सोडा बाई कार्ब’ घोलकर ले आई और उसमें नींबू निचोड़कर, भरा हुआ गिलास राधा को पिला दिया। पश्चात् उसके ले जाकर शारदा के कमरे में लिटा दिया और एक घण्टा-भर सोने के लिए कहा।

‘‘नींद नहीं आएगी।’’ राधा का कहना था।

‘‘लेटी रहो। नहीं आएगी, तब भी विश्राम तो हो जाएगा।’’

परन्तु ‘सोडा बाई कार्ब’ और नींबू पीने से उसको झपकी आ गई। एक घण्टा सोने के पश्चात् वह उठी तो उसको शौच जाने की इच्छा हुई। रजनी ने तब तक अनीमा तैयार कर रखा था। उसको ग्लिसरीन का अनीमा दे दिया। इससे पेट साफ हो गया। इसके पश्चात् वे आई और पाठ करने बैठने लगी तो रजनी ने कह दिया, ‘‘राधा! तुम्हारी आँखों से पता चलता है कि तुम अभी थकी हो। इसलिए कुछ देर और आराम कर लो।’’ अब राधा सोई तो ठीक छः घण्टे पश्चात् जागी।

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