उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मैं अपने लिए नहीं कह रहा प्रिये! मैं तो उस संसार की बात कर रहा हूँ जिसमें कल मुझको प्रवेश करना है।’’
‘‘मेरा उससे क्या वास्ता है?’’
‘‘तुम मेरी पत्नी हो। एक अफ़सर की पत्नी को भी उसके साथ और उस जैसी ही ‘पोजीशन’ में रहना पड़ेगा।’
‘‘शारदा को अपने पति की बात बिलकुल समझ नहीं आयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि साथ रहने का यह अर्थ कैसे हो गया कि वह दूसरों को प्रसन्न भी करे। उनको क्रुद्ध न करने की बात तो ससझ आती थी, परन्तु प्रसन्न रखने की बात वह पसन्द नहीं करती थी। इस पर भी, उसकी अपने पति से ढाई वर्ष के बाद भेंट हुई थी। अतः पहले ही दिन वह कोई विवादास्पद बात करना नहीं चाहती थी। अतः चुपचाप अपने पति की योजनाओं को सुनती रही। वह विस्मय से उसका मुख ही देखती रही।’’
अगले दिन इन्द्र चीफ़ सेक्रेटरी टू दि प्रॉर्विशियल गवर्नमेंट के सामने उपस्थित हो गया। चीफ़ सेक्रेटरी ने उसकी प्रशंसा में उसके प्रोफ़ेसर का पत्र पढ़कर सुनाया और बताया कि भारत के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट ने उसकी नियुक्ति कर दी है। उसे जल्दी ही चार्ज लेना चाहिए।
‘‘मैं एक सप्ताह में उपस्थित हो जाऊँगा।’’
‘‘ठीक है। आपको नियुक्ति-पत्र कल मिल जाएगा और एक सप्ताह में चार्ज लेने के लिए उसमें आज्ञा होगी।’’
इसके पश्चात् इन्द्रनारायण के रहने के लिए कोठी और उसकी सुख-सुविधा की अन्य बातें होती रहीं। सेक्रेटरी ने इन्द्रनारायण से कहा, ‘‘आपको नियुक्ति-पत्र के मिलने ही गवर्नर बहादुर की कोठी पर जाकर विज़ियर्स बुक पर नाम लिखा आना चाहिए।’’
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