उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मैं कल अपने गाँव जा रहा हूँ। वहाँ नियुक्ति-पत्र मिलते ही लखनऊ चला आऊँगा और आते ही गवर्नर बहादुर की सेवा में अपना नाम भेज दूँगा।’’
उसी सायंकाल रायसाहब ने इन्द्र से उसका कार्यक्रम पूछा। वे उसके लौटने की प्रसन्नता में एक दावत देना चाहते थे। इन्द्रनारायण ने कह दिया, ‘‘मैं आशा करता हूँ कि कल तक मेरा नियुक्ति-पत्र आपके द्वारा आ जाएगा। आप मुझको तार द्वारा सूचित कर दीजिएगा। मैं तुरन्त लौट आऊँगा। मुझको गवर्नर से भेंट करने का आदेश हुआ है। तभी आपकी ‘पार्टी’ होनी ठीक रहेगी।’’
अगले दिन रजनी उनसे मिलने के लिए आई। इन्द्रनारायण उसे शारदा के पास ले गया और बोला, ‘‘देखो रजनी बहन! अब यह डायरेक्टर ऑफ़ पब्लिक हैल्थ की पत्नी हो गई और...।’’
रजनी ने बात बीच में ही काटकर कह दिया, ‘‘इन्द्र भैया! क्या कह रहे हो? यह किसकी पत्नी हो गई है?’’
‘‘डायरेक्टर ऑफ़ पब्लिक हैल्थ की।’’
‘‘तो इन्द्र भैया ने इसको तलाक दे दिया है क्या?’’ रजनी ने माथे पर त्योगी चढ़ाकर पूछ लिया।
‘‘नहीं; तुम्हारे भैया इन्द्रनारायण ही डायरेक्टर ऑफ़ हैल्थ बनने जा रहे हैं।’’
‘‘तो बनें। परन्तु भैया! यह पत्नी तो इन्द्र की है रहेगी। सुन लो। न तो इस बेचारी पर अपनी पदवी का बोझा डालना, न ही यह शारदा भाभी के अतिरिक्त कुछ बनने जा रही है।’’
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