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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


दोनों उठकर क्लब हॉल के कोने में चली गयीं। वहाँ जाकर दूसरी औरत ने बैरा को संकेत कर कॉफी मँगा ली। जब बैरा कॉफी लेने के लिए गया तो उसने पूछ लिया, ‘‘आप इन्द्रनारायण की पत्नी हैं न?’’

‘‘जी।’’ शारदा ने विस्मय में उसका मुख देखते हुए कहा, ‘‘मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा।’’

‘‘इसलिए कि मैं क्लब में कभी-कभी आती हूँ। और शायद आप भी कभी-कभी ही आती हैं। मैंने सुना था कि जिस दिन डायरेक्टर साहब की पत्नी यहाँ आती हैं, उस दिन यहाँ आने वालों की आँखों की चमक दुगुनी हो जाती है। सो आज आपको देख लिया है।

‘‘मेरा नाम ऐना ईरीन है। मैं ऐंग्लो-इंडियन समुदाय की लड़की हूँ, परन्तु मेरा विवाह एक मुसलमान नवाब से हुआ था। पीछे तलाक हो गया और फिर उससे दोस्ती हो गई। अब मैं यहाँ उनकी एक दोस्त की हैसियत से आती हूँ।’’

‘‘मैं आपके खाविन्द इन्द्रनारायण की सहपाठिन हूँ। हम दोनों दो वर्ष तक इकट्ठे रहे हैं। एक बार आपके खाविन्द ने, जब वे मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, तो मेरी जान बचाई थी, वर्ना मैं फाँसी पा गई होती।

‘‘जब से मैंने आपके विषय में यहाँ के पुरुषों के खयालात सुने हैं, तब से ही मैं आपसे मिलकर आपको सचेत करना चाहती थी।’’

शारदा को क्लब में आने वाली अन्य औरतों की भाँति ऐना की बातें भी फूहड़ ही प्रतीत हुई थीं। वह समझती थी कि वह उसको भयभीत कर, तदनन्तर सहानुभूति प्रकट कर, उसकी विशेष मित्रता प्राप्त करना चाहती है। इस पर भी वह मुस्कराते हुए पूछने लगी, ‘‘क्लब के पुरुष मेरे विषय में क्या खयाल रखते हैं?’’

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