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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘वे आपको स्वर्ग की अप्सरा मानते हैं और आजकल आपका सहवास प्राप्त करने के विषय में शर्तें लगाई जा रही हैं। इस क्लब में पढ़े-लिखे गुण्डों का भी एक समुदाय है। वे, मैंने सुना है, परस्पर एक-एक हजार रुपये की शर्ते लगा रहे हैं कि जो आपके अपने खाविन्द के प्रति वफादारी को जीत लेगा, वह एक हजार रुपया पाएगा। इसके लिए अभी रुपया इकट्ठा हो रहा है। कई दिन से वे जो कुछ जुए में जीतते हैं, ‘शारदा-फण्ड’ के नाम से एकत्रित करते हैं। जिस दिन रुपया पूरा हुआ, उसी दिन आपकी वफादारी (सतीत्व) पर आक्रमण करना आरम्भ हो जाएगा।’’

शारदा को इस कथा पर चिन्ता अवश्य लगी, परन्तु उसको अभी भी यह बात बनावटी और केवल मात्र डराने के लिए कही गई प्रतीत हुई थी। उसने साहस कर कह दिया, ‘‘मुझको आपकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा।’’

‘‘अच्छा, ऐसा करिए। आपने जब भी क्लब आना हो मुझको एक घण्टा पहले टेलीफोन कर दिया करें। कहीं ऐसा न हो कि मेरी बात का विश्वास होने के पूर्व ही आप हार खा चुकी हों।’’

इस समय कॉफी आ गई। दोनों पीने लगीं। शारदा को ऐना की बात पर अभी भी विश्वास नहीं आया था, इस पर भी भय अवश्य लग रहा था। कॉफी की एक सुरकी लगाकर शारदा ने कहा, ‘‘अच्छा...।’’ वह उसका नाम पूछना भूल गई थी, उसने पूछ लिया, ‘‘क्या नाम है आपका?’’

‘‘ऐना। ऐना ईरीन।’’

‘‘अच्छा मिसेज इरीन! मुझको उन गुण्डों के दर्शन तो करा दीजिए। मैं उनसे सतर्क रहूँगी। आपका बहुत अहसान मानूँगी।’’

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