उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मुझको क्या पता था कि मिस्टर तिवारी यहाँ बैठा है? मैं तो उसका आपसे परिचय कराने के लिए लाई थी।’’
‘‘कुछ हानि नहीं हुई।’’ एक अन्य सज्जन ने कह दिया, ‘‘आज हम अपने मकसद में बहुत आगे निकल गए हैं। तेरह सौ हो गया है। इन्द्र नारायण चार सौ के लगभग आज हारा है। अब दो बातें होनी शेष हैं। एक तो लाटरी डालकर अपना-अपना नम्बर निकालेंगे और दूसरा यह कि शेष तीन सौ का क्या होगा?’’
‘‘वह तीन सौ तो मुझको मिलना चाहिए।’’ ऐना ने कह दिया।
‘‘तुमको तो नहीं। हाँ, तुम्हारे लिए दावत हो सकती है।’’
‘‘मैं ऐसा नहीं कर सकती। आप मेरे खाविन्द को जानते हैं। वह बहुत ही जलन रखते हैं।’’
जोशी ने कह दिया, ‘‘खाविन्द या मित्र?’’
‘‘एक ही बात है। मैं उसकी वफादार मित्र हूँ। बीवी से भी ज़्यादा।’’ सब हँसने लगे।
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