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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


उसी आदमी ने आगे कह दिया, ‘‘हमारा फण्ड पूरा हो गया है। पूरे से भी ज्यादा, और मिस्टर तिवारी ने शान से पूर्ण करने में भाग लिया है।’’

फण्ड का नाम सुन शारदा सतर्क हो गई। यद्यपि कैसा फण्ड था जिसमें उसके पति ने भी हिस्सा दिया है, बताया नहीं गया था। तो भी ऐना की बात का उसको यहाँ समर्थन ही प्रतीत हुआ।

इसके पश्चात् ऐना ने वहाँ बैठे सबका परिचय करा दिया। वे भिन्न-भिन्न दफ्तरों के नवयुवक अफ़सर थे। अन्त में ऐना इन्द्रनारायण का परिचय कराने लगी तो सब हँस पड़े।

एक मिस्टर जोशी ने पूछ लिया, ‘‘ऐना! क्या तुम नहीं जानतीं कि ये इनकी धर्मपत्नी हैं?’’

‘‘जानती हूँ। परन्तु मिस्टर तिवारी, जुआ खेलने वाले से मिसेज शारदा का परिचय नहीं था। वही कराने जा रही थी।’’

‘‘इन्द्रनारायण के माथ पर त्यौरी चढ़ गई और उसने उठ शारदा को ले चलने के लिए हाथ बढ़ाकर कहा, ‘‘शारदा डियर! चलो, मुझको घर पर कुछ काम है।’’

सब हँस पड़े। शारदा तत्क्षण उठी और अपनी बाँह अपने पति की बाँह में डालकर वह उसके साथ कमरे से बाहर निकल गई। उसको उस मेज पर बैठे हुओं के हँसने का शब्द सुनाई देता रहा।

जब शारदा और इन्द्र चले गए तो जोशी ने कहा, ‘‘ऐना! यह तुमने क्या कर दिया है?’’

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