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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘और उन चारों से सन्तुष्ट न होकर फिर इसके पीछे पड़ा है?’’

‘‘है तो यह बात बहुत विचित्र, मगर वह कहता है कि वह ऐना से मुहब्बत करता है।’’

‘‘पाजी है वह। मैं समझती हूँ कि वह या तो महामूर्ख है अथवा बदमाश है।’’

‘‘वह क्या है, कहा नहीं जा सकता। परन्तु ऐना के विषय में तो सब जानते हैं कि वह खाविन्द से तलाक के बाद अपने श्वशुर की रखैल बन गई थी। उसके श्वशुर को शराब में किसी ने विष मिलाकर पिला दिया। वह भी उसके साथ पी गई थी, परन्तु वह बूढ़ा चल बसा और यह बच गई। इस अपराध में इसका खाविन्द पकड़ा गया। वह फाँसी पर लटक जाता यदि पुलिस को रिश्वत न दी गई होती।’’

‘‘तो उसने विष दिया था क्या?’’

‘‘बड़े नवाब के मरने का लाभ उसी को हुआ है।’’

‘‘वह तो कहती थी कि उसको फाँसी होते-होते आपने बचाया है।’’

‘‘इसमें भी कुछ सचाई है। मैं और रजनी उसको सचेत करने उसकी कोठी पर गए थे। हमको पता चल चुका था कि बड़े नवाब उसको मरवा डालने वाले हैं। हमारे वहाँ पहुँचने से पहले ही बड़े नवाब का देहान्त हो चुका था और ऐना को उलटी हो जाने से वह विष के प्रभाव से बच चुकी थी। पुलिस यही विचार कर रही थी कि ऐना ने शराब में विष मिलाया है। उसने नवाब साहब को खूब पिलाया है और स्वयं बहुत थोड़ा पिया है और उसको भी कै करके निकाल दिया है।

‘‘मगर हमारी गवाही ने उसको बरी करा दिया। पीछे वह अपने खाविन्द छोटे नवाब को भी छुड़ा लाई।’’

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