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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘मार्ग में उसने बताया, ‘‘मेरे पति यदि पूछें तो यह नहीं बताना कि मैं जोशी के साथ गयी थी।’’

‘क्यों, क्या हुआ है?’ मैंने पूछ लिया। वैसे मैं सारी बात समझ गयी थी।

‘‘उसने केवल यह कहा, ‘वह बहुत बड़ा बदमाश है।’’

‘‘एक भले घर की औरत और क्या कह सकती थी।’’

‘‘यह तो जुर्म है।’’

‘‘ठीक है। मगर बदनामी से बचने के लिए मिसेज बिन्द्रा सब-कुछ भीतर-ही-भीतर पी गयी हैं।’’

‘‘अगले दिन क्लब में उसकी शर्त के रुपये का जश्न हुआ था।’’

शारदा का मुख विवर्ण हो गया था। ऐना ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है?’’

शारदा ने कह दिया, ‘‘अगर आप मुझको सचेत न करतीं तो मैं भी वैसी फँस सकती थी।’’

‘‘हाँ, और अपने पति महोदय को मेरा नाम लिए बिना, सब-कुछ बता दीजिएगा। हो सके तो उनको भी वहाँ जाने से मना करिएगा। उनको जुए का चस्का लग रहा है।’’

शारदा के मन में ग्लानि भर रही थी। वह विचार करने लगी थी कि गाँव में उसको अधिक सुख था अथवा शहर में? इन दिनों उसका पति प्रान्त के पश्चिमी जिलों के दौरे पर गया हुआ था। अभी तीन दिन तक उसके आने का कार्यक्रम न था। अब वह चिन्ता से बेचैन रहने लगी थी। अतः ऐना के जाने के तुरन्त बाद ही वह उठी। उसने अपनी मोटर निकाली और रजनी के घर चली गयी।

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