उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘इस विषय में मैं मदनजी की इच्छानुसार कार्य करूंगी। फिर भी इतना तो निश्चय है कि उनको इस अपरिचित देश में निःसहाय छोड़कर मैं जाऊंगी नहीं।’’
‘‘निःसहाय तो वे नहीं हैं। जब तक मैं हूं, मैं उसकी प्रत्येक प्रकार से सहायता करूंगा। मैं विवाह के लिए किसी को विवश नहीं कर सकता। मदन यदि अपना शेष जीवन अमेरिका में ही व्यतीत करना चाहे तो भी मैं उसके लिए किसी-न-किसी प्रकार के कार्य का प्रबन्ध कर दूंगा।’’
इलियट ने कहा, ‘‘मदन मेरे मित्र हैं और यदि उन्होने यहां रहना स्वीकार कर लिया तो मैं उनके लिए आजीविका का प्रबन्ध कर सकती हूं और...।’’ वह कहती-कहती रुक गई।
‘‘और क्या?’’ डॉक्टर साहनी ने पूछा।
‘‘और यदि उसकी विवाह करने की इच्छा हुई तो कम-से-कम मैं एक लड़की को जानती हूं जो अब भी उनसे विवाह करने की इच्छा रखती है।’’
लैसली हंस पड़ी। महेश्वरी को यह सब वार्तालाप अति दुःखकारक प्रतीत हो रहा था। उसने उठते हुए कहा, ‘‘मैं समझती हूं कि यहां तो केवल लैसली ही अपने विषय में बात कर सकती है। यदि उसने जो कुछ कहा है, वह उसका अन्तिम निर्णय है तो मैं समझती हूं कि हमको अब चलना चाहिये। शेष विचार तो मदनजी को करना है। वे जब तक स्वस्थ होगें, यहां अधिक सुविधा रहेगी।’’
‘‘इस विषय में मैं मदनजी से बात करने के उपरान्त निर्णय करूंगी।’’
लैसली उसको उसके होटल तक पहुंचाने के लिए जाने को तैयार हो गई।
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