लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


6

उस दिन के बाद लैसली मदन का कुशल समाचार लेने के लिए हॉस्पिटल नहीं गई। महेश्वरी ने मदन को लैसली के घर पर उस दिन हुई वार्तालाप के विषय में कुछ भी नहीं बताया। मदन के मन में अभी भी आशा थी कि वह शान्तिपूर्वक विचार करने पर उससे सम्बन्ध विच्छेद का विचार त्याग देगी। परन्तु जब वह कई दिन तक नहीं आई तो उसकी आशा धीरे-धीरे क्षीण हो गई।

एक दिन सर्वथा निराश हो वह महेश्वरी से पूछने लगा, ‘‘महेश! कभी लैसली भी मिली है या नहीं?’’

‘‘प्रातः नौ बजे से रात्रि नौ बजे तक आपके समीप रहने के कारण मुझे तो उससे मिलने का अवसर नहीं मिलता।’’

लैसली को हॉस्पिटल आये दस दिन हो गये थे। अब लगभग नित्य ही पट्टी की जाती थी और डॉक्टर कह रहे थे कि घाव आशा से अधिक शीघ्र भर रहा है। डॉक्टर साहनी भी दूसरे-तीसरे दिन आता था। केवल नीला नित्य बार आती थी। वह लैसली के व्यवहार से सन्तुष्ट नहीं थी।

मदन ने कहा, ‘‘मेरी राय है कि तुम उसके पास जाकर उसके मन के भावों का विश्लेषण करके आओ। मैं जानना चहता हूं कि वह अब मेरे साथ किस प्रकार का सम्बन्ध रखना चाहती है।’’

‘‘जानकर क्या करेंगे? अभी दस-बारह दिन तक तो आप यहां से जा नहीं सकते। यों, यदि आप कहेंगे तो मैं चली जाऊंगी और उससे मिलकर समाचार ले आऊंगी। अथवा लैसली की माताजी नित्य ही यहां आती हैं। आप उनसे भी लैसली के विषय में पूछ सकते हैं। इसके अतिरिक्त भी एक ढंग है। मिस इलियट आती रहती है। वह लैसली की सहेली है। उसके द्वारा भी उसके विचारों का ज्ञान हो सकता है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book