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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘यदि कुछ काल तक और इसका भार वहन कर सको तो मैं आजीवन तुम्हारा आभारी रहूंगा। फिर लिखना और जब यह जाने योग्य हो जायेगा तो मैं किसी को भेज कर मंगवा लूंगा।’’

‘‘ठीक है।’’

कदाचित लैसली इसी आश्वासन के लिए आई भी थी।

इससे भी विचित्र बात यह हुई कि जब यह लोग दिल्ली पालम हवाई अड्डे पर पहुंचे, इनको जंगले के किनारे मिस इलियट खड़ी दिखाई दी। जिस समय दो आदमी मदन को हवाई जहाज से नीचे ला रहे थे, तो उसको योरपियन पोशाक में, जंगले के बाहर खड़ी, एक औरत उसको रूमाल हिलाती दिखाई दी। मदन ने उसे उसी समय पहचान लिया और उसने महेश्वरी से कहा, ‘‘वह देखो, मिस इलियट खड़ी है।’’

‘‘सत्य?’’ महेश्वरी ने देखा और बोली, ‘‘आप बहुत ही भाग्यशाली हैं। जो कोई भी आपसे मिलता है, आप पर मोहित हो जाता है।’’

‘‘हां, सबसे अधिक लैसली ही हुई थी।’’

‘‘वह तो पशु सिद्ध हुई है। मैं मनुष्यों के विषय में बात कर रही थी।’’

7

दरियागंज का मकान मदन के लिए सुखप्रद नहीं रहा। ऊपर की मंजिल पर निवास होने के कारण, उसके लिए चढ़ना-उतरना कठिन ही नहीं, असम्भव था। इसलिए लोदी रोड में एक कोठी ले ली गई और मदन के बैठने और कमरे-कमरे में जाने के लिए गाड़ी बनवा दी गई। उसको वह हाथ से चला लेता था।

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