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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘कितने दिन की छुट्टी ली है?’’

‘‘मैं अब नौकरी नहीं करूंगी। मैंने उससे सदा के लिए अवकाश लिया है।’’

‘‘तो क्या ब्राजील में ही रहोगी?’’

‘‘यह निर्णय तो वहां जाकर ही करूंगी।’’

‘‘हमारी सीट्स बुक हो गई हैं। हम परसों यहां से जा रहे हैं।’’

‘‘अभी तो मैं नमस्कार करने के लिए आई हूं। कभी फिर अवसर मिला तो हिन्दुस्तान आकर भेंट करूंगी।

‘‘हम टोकियो में एक सप्ताह तक ठहरेंगे। वहां से होंगकोंग, फिर सीधे कलकत्ता और दिल्ली।’’

‘‘किस दिन दिल्ली पहुंचने का विचार है?’’

‘‘यदि कोई विघ्न, बाधा न पड़ी तो आज से पन्द्रहवें दिन प्रातःकाल कलकत्ता से चल कर दस बजे दिल्ली पहुंच जायेंगे।’’

‘‘आपकी सुरक्षित यात्रा के लिए मैं प्रभु से कामना करती हूं।’’

‘‘धन्यवाद।’’ मदन ने कहा और हाथ जोड़कर नमस्कार कर दिया। वह सोफा पर ढासना लगाये बैठा था।

सबसे विचित्र बात तो विदा होने के दिन लैसली, उसकी मां तथा पिता का मिलने के लिए आना था। औपचारिक विदाई ही हुई। लैसली ने एक बार अवसर पा, एकान्त में अपने पेट की ओर संकेत कर पूछा, ‘‘इसका क्या करूं?’’

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