उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
इस पत्र से मदन, महेश्वरी और इलियट विस्मय में एक-दूसरे का मुख देखते रह गये। इलियट ने कहा, ‘‘मैं उसको पत्र लिखूंगी।’’
‘‘क्या लिखोगी?’’
‘‘यही कि जो कुछ उसने किया है, उससे वह अपना, मदन और उसके पुत्र पर पूर्णाधिकार खो चुकी है। मैं उसको बता देना चाहती हूं कि उसकी वर्तमान स्थिति उसके अपने स्वार्थ के कारण ही हुई है। अब भी जो कुछ वह कर रही है, अपने स्वार्थवश कर रही है। उसके मस्तिष्क पर मदन के शारीरिक सौन्दर्य का प्रभाव अभी भी विद्यमान है और वह मूर्ख सैमुएल के शरीर को मदन का शरीर समझ कर ही उस पर मुग्ध हो रही है।’’
इलियट की उक्त विवेचना सुनकर मदन हंस पड़ा। उसने पूछा, ‘‘तो क्या शरीरों में समानता यह प्रकट नहीं करती कि पिता का कुछ अंश तो पुत्र में गया ही है?’’
‘‘जी नहीं। देखिए, यह प्रकृति का गुण है कि एक पदार्थ अपने जैसे ही अंश प्रकृति में से एकत्रित कर लेता है। जैसे फिटकरी और तूतिया को इकट्ठे पानी में घोल दिया जाए तो फिटकरी का दाना फिटकरी के अंश को अपने पर आकर्षित करता है और तूतिया के दाने अपने अंशों को। फिटकरी के दाने पर तूतिये के अंश नहीं चढ़ते।
‘‘फिटकरी निर्जीव है। इस प्रकार ही मदन के कोषाणु गर्भ-निर्माण में काम आये थे। यही कारण है कि मदन के शरीर से मदन-जैसा शरीर बन गया है। परन्तु आत्मा अपना-अपना है और मदन के लड़के का आत्मा सर्वथा भिन्न गुण-स्वभाव वाला हो सकता है।’’
मदन ने तो निश्चय कर लिया था कि यदि सैमुएल लैसली के मन बहलाने का साधन बन रहा है तो वह लड़के को उससे मांगने का हठ नहीं करेगा। इस कारण उसने फिर दोबारा पत्र नहीं लिखा।
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