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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘हां, और आप?’’

‘‘मदन की दादी। बहुत देर लगा दी आते हुए। सुनाओ मां कैसी है तुम्हारी?’’

‘‘बहुत मजे में।’’

‘‘और तुम कैसी रहीं?’’

यह कहते-कहते मदन की दादी उठी और अन्दर जाते हुए बोली, ‘‘आओ, भीतर आ जाओ।’’

दादी उसको महेश्वरी के सम्मुख ले गई। महेश्वरी बच्ची के लिए फ्रॉक सी रही थी।

‘‘महेश बेटा! यह देखो।’’

महेश्वरी ने ऊपर देखा और लैसली को अपने से पन्द्रह वर्ष अधिक बुढ़ी हो गई देख, पहिचानने में कठिनाई हुई। एकाएक सैमुएल को देख वह पहचान गई। उसके मुख से निकला, ‘‘लैसली! ओह! तुम? आ गई हो?’’

और वह लपककर उससे गले मिलने लगी।

।। समाप्त ।।

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