उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘हां, और आप?’’
‘‘मदन की दादी। बहुत देर लगा दी आते हुए। सुनाओ मां कैसी है तुम्हारी?’’
‘‘बहुत मजे में।’’
‘‘और तुम कैसी रहीं?’’
यह कहते-कहते मदन की दादी उठी और अन्दर जाते हुए बोली, ‘‘आओ, भीतर आ जाओ।’’
दादी उसको महेश्वरी के सम्मुख ले गई। महेश्वरी बच्ची के लिए फ्रॉक सी रही थी।
‘‘महेश बेटा! यह देखो।’’
महेश्वरी ने ऊपर देखा और लैसली को अपने से पन्द्रह वर्ष अधिक बुढ़ी हो गई देख, पहिचानने में कठिनाई हुई। एकाएक सैमुएल को देख वह पहचान गई। उसके मुख से निकला, ‘‘लैसली! ओह! तुम? आ गई हो?’’
और वह लपककर उससे गले मिलने लगी।
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