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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


इतने में चाय आ गई। मिस इलियट चाय बनाने लगी। मदन ने पूछा, ‘‘आपके परिवार के सब लोग एकत्रित ही रहते हैं?’’

‘‘जी नहीं। मेरा बड़ा भाई अपनी पत्नी के साथ जंगल में रहता है। वह ठेकेदार है। लकड़ी कटवाकर उनको ट्रकों में लदवा, आरा मशीन में भिजवाता है। इस समय वह दो-तीन मिलियन का अधिपति है। मेरे माता-पिता अपने तीन छोटे बच्चों के साथ बोर्नियो में रहते हैं। वहां से वे लकड़ी अमेरिका तथा अन्य देशों में भेजा करते हैं। वे भाई से भी अधिक धनवान हैं।’’

‘‘फिर भी आप घर से इतना दूर यहां आकर नौकरी करती हैं?’’

‘‘हां, स्वतन्त्रता से धन अर्जित कर, फिर उसे व्यय करने में भी एक विचित्र आनन्द आता’’

‘‘ऐसा हमारे देश में नहीं होता। हमारे देश में जब किसी लड़की का पिता, भाई या पति अर्जन करता है तो फिर लड़की अथवा पत्नी को स्वतन्त्र कार्य करने की आवश्यकता नहीं रहती।’’

मिस इलियट विस्मय में मदन का मुख देखती रह गई। वह अपने मन में गम्भीरतापूर्वक दोनों स्थितियों का विश्लेषण कर रही थी और यह जानने का यत्न कर रही थी कि कौनसी स्थिति सुखप्रद अथवा आनन्ददायक है

मदन ने चाय की सुरुकी लगा प्याले को सौसर में रखते हुए कहा,

‘‘मेरी मंगेतर है। वह एक धनी बाप की सन्तान है। वह तो एक क्षण के लिए भी यह विचार नहीं कर सकती कि वह कहीं जाकर नौकरी करे, विशेषतया घर से बाहर जाकर।’

‘‘और वह दिन-भर क्या करती रहती है?’’

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