उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास) प्रतिज्ञा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है
कमला०–कुछ झूठ कह रहा हूं? पूर्णा खुद देख रही हैं। तुम्हें उनके सत्संग से कुछ शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए थी। इन्हें यहां लाने का मेरा एक उद्देश्य यह भी था। मगर तुम्हारे ऊपर इनकी सोहबत का उलटा ही असर हुआ। यह बेचारी समझाती होंगी, मगर तुम क्यों मानने लगीं। जब तुम मुझी को नहीं गिनती, तो यह बेचारी किस गिनती की हैं। भगवान सब दुःख दे, पर बुरे का संग न दे। तुम इनमें से एक साड़ी रख लो पूर्णा, दूसरी प्रेमा के पास भेज देता हूं।
सुमित्रा ने दोनों साड़ियों को उठाकर द्वार की ओर फेंक दिया। दोनों कागज में तह की हुई रखी थीं। आंगन में जा गिरीं। महरी उसी समय आंगन धो रही थी। जब तक वह दौड़कर साड़ियां उठाए, कागज भीग गया और साड़ियों में धब्बे लग गए। पूर्णा ने तिरस्कार के स्वर में कहा–यह तुमने क्या किया बहन! देखो तो साड़ियां खराब हो गईं!
कमला०–इनकी करतूतें देखती जाओ! इस पर मैं ही बुरा हूं। मुझी में जमाने-भर के दोष हैं।
सुमित्रा–तो ले क्यों नहीं जाते अपनी साड़ियां!
कमला०–मैं तुम्हें नहीं देता।
सुमित्रा–पूर्णा भी न लेंगी।
कमला०–तुम उनकी ओर से बोलनेवाली कौन होती हो? तुमने अपना ठेका लिया है या जमाने भर का ठेका लिया है। बोलो पूर्णा, एक रख दूं न? यह समझ लो कि तुमने इन्कार कर दिया, तो मुझे बड़ा दुःख होगा।
पूर्णा बड़े संकट में पड़ गई। अगर साड़ी लेती है, तो सुमित्रा को बुरा लगता है, नहीं लेती, तो कमला बुरा मानते हैं। सुमित्रा क्यों इतना दुराग्रह कर रही है, क्यों इतना जामे से बाहर हो रही है, यह भी अब उससे छिपा न रहा। दोनों पहलुओं पर विचार कर उसने सुमित्रा को प्रसन्न रखने का निश्चय किया। कमला रूठकर उसको कोई हानि नहीं पहुंचा सकते। अधिक-से-अधिक उसे यहां से चला जाना पड़ेगा। सुमित्रा अप्रसन्न हो गयी, तो न जाने क्या गजब ढाए, न-जाने उसके मन में कैसे-कैसे कुत्सित भाव उठें। बोली–बाबूजी, रेशमी साड़ियां पहनने का मुझे निषेध है, लेकर क्या करूंगी, ऐसा ही है तो कोई मोटी-झोटी धोती ला दीजिएगा।
यह कहकर उसने कमलाप्रसाद की ओर विवश नेत्रों से देखा। उनमें कितनी दीनता, कितनी क्षमा-प्रार्थना भरी हुई थी। मानो वे कह रही थीं–लेना तो चाहती हूं, पर लूं कैसे! इन्हें आप देख ही रहे हैं, क्या घर से निकालने की इच्छा है?
कमलाप्रसाद ने कोई उत्तर नहीं दिया। साड़ियां चुपके से उठा लीं और पैर पटकते हुए बाहर चले गए।
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