कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह) प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ
रियासत की हैसियत देखते हुए वे कम-से-कम दस हजार सालाना के भागी हैं और उनके भाग में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता। मैं केवल अपना मालिक हूँ। परन्तु मैं भी अकेला नहीं हूँ। सावित्री चाहे स्वयं चाहे मेरे साथ आग में कूदने को तैयार हो, किंतु अपने प्यारे राजपुत्र को इस आँच के समीप कदापि न आने देगी।
कुँवर महाशय और अधिक न सोच सके। वह विकल दशा में पलँग पर से उठ बैठे और कमरे में टहलने लगे। थोड़ी देर बाद उन्होंने जँगले से बाहर की ओर झाँका और किवाड़ खोलकर बाहर चले आये। चारों ओर अँधेरा था। उनकी चिंताओं की भाँति सामने अपार और भयकारी गोमती नदी बहती थी। वह धीरे-धीरे नदी के तट पर चले गये और देर तक वहाँ टहलते रहे। आकुल हृदय को जल-तरंगों से प्रेम होता है। शायद इसलिए कि लहरें भी व्याकुल हैं। उन्होंने उपने चंचल मन को फिर एकाग्र किया। यदि रियासत की आमदनी से ये सब वृत्तियाँ दी जायँगी, तो ऋण का सूद निकलना भी कठिन होगा, मूल का कहना क्या? क्या आय में वृद्धि नहीं हो सकती? अभी अस्तबल में बीस घोड़े हैं, मेरे लिए एक यथेष्ट है। नौकरों की संख्या सौ से कम नहीं होगी। मेरे लिए दो भी अधिक है! यह अनुचित है कि अपने ही भाइयों से नीच सेवाएँ करायी जायँ। उन मनुष्यों को मैं अपने सीर की जमीन दे दूँगा, सुख से खेती करेंगे और मुझे आशीर्वाद देंगे। बगीचे में फल अब तक डालियों के भेंट हो जाते थे। अब उन्हें बेचूँगा और सबसे बड़ी आमदनी तो बयाई की है। केवल महेशगंज के बाजार के दस हजार रुपये आते हैं। यह सब आमदनी महन्त जी उड़ा जाते हैं। उनके लिए एक हजार रुपये साल बहुत होने चाहिए। अबकी इस बाजार का ठीका करूँगा। आठ हजार से कम न मिलेंगे। इन मदों से २५ हजार रुपये की वार्षिक आय होगी। सावित्री और लल्ला (लड़का) के लिए एक हजार रुपया माहवार काफी है। मैं सावित्री से स्पष्ट कह दूँगा कि या तो एक हजार मासिक लो और मेरे साथ रहो या रियासत की आधी आमदनी ले लो और मुझे छोड़ दो। रानी बनने की इच्छा हो, तो खुशी से बनो, परंतु मैं राजा न बनूँगा।
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