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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

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हमारी सभ्यता का आदर्श अब बहुत ही उच्च हो गया था। हमको अब अपनी मित्र मण्डली से बाहर दूसरों से मिलने-जुलने में संकोच होता था। हम अपने से लघु श्रेणी के लोगों से बोलने में अपना अपमान समझते थे। नौकरों को अपना नौकर समझते थे, और बस, हमको उनके निजी मुआमिलों से कुछ मतलब नहीं था। हम उनसे पृथक रह कर उनके ऊपर अपना रोब जमाये रखना चाहते थे। हमारी इच्छा यह थी कि वह हम लोगों को साहब समझें। हिन्दुस्तानी स्त्रियों को देखकर मुझे उनसे घृणा होती थी, उनमें शिष्टता न थी। खैर!

बाबू जी का जी दूसरे दिन भी न सँभला! मैं क्लब न गयी। परन्तु जब लगातार तीन दिन तक उन्हें बुखार आता गया और मिसेज दास ने बार-बार एक नर्स बुलाने का आग्रह किया, तो मैं सहमत हो गयी। उस दिन से रोगी की सेवासुश्रूषा से छुट्टी पाकर बड़ा हर्ष हुआ। यद्यपि दो दिन से मैं क्लब न गयी थी, परन्तु मेरा जी वहीं लगा रहता था, बल्कि अपने भीरुतापूर्ण त्याग पर क्रोध आता था।

एक दिन तीसरे पहर मैं कुर्सी पर लेटी हुई एक अंग्रेजी पुस्तक पढ़ रही थी। अचानक मनमें यह विचार उठा कि बाबू जी का बुखार असाध्य हो जाय तो? परन्तु इस विचार से मुझे लेश-मात्र भी दु:ख न हुआ। मैं इस शोकमय कल्पना का मन-ही-मन आनन्द उठाने लगी। मिसेज़ दास, मिसेज़ नायडू, मिसेज़ श्रीवास्तव, मिस खरे, मिसेज़ सरगा अवश्य ही मेरे दुःख में सम्मिलित होंगी। उन्हें देखते ही मैं सजल नेत्र हो उठूँगी, और कहूँगी, बहनों! मैं लुट गयी। मैं लुट गयी!! अब मेरा जीवन अँधेरी रात के भयावह वन या श्मशान के दीपक के समान है। परन्तु मेरी अवस्था पर दु:ख न प्रकट करो। मुझ पर जो पड़ेगी, उसे मैं उस महान् आत्मा के मोक्ष के विचार से सहन कर लूँगी।

मैंने इस प्रकार मन में एक शोकपूर्ण व्याख्यान की रचना कर डाली। यहाँ तक कि अपने उस वस्त्र के विषय में भी निश्चय कर लिया, जो मृतक के साथ श्मशान जाते समय पहनूँगी।

इस घटना की शहर-भर में चर्चा हो जायेगी। सारे कंटून्मेंट के लोग मुझे समवेदना के पत्र भेजेंगे। तब मैं उनका उत्तर समाचार पत्रों में प्रकाशित करा दूँगी कि मैं प्रत्येक शोक-पत्र का उत्तर देने में असमर्थ हूँ। हृदय के टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं, उसे रोने के सिवा और किसी काम के लिए समय नहीं है। मैं इसके लिए उन लोगों की कृतज्ञ हूँ और उनसे विनय-पूर्वक निवेदन करती हूं कि वे मृतक की आत्मा की सद्गति के निमित्त ईश्वर से प्रार्थना करें।

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