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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

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श्रीबिलास–जब आप कह रहे हैं कि दौलतवालों की आजकल कोई कदर नहीं है तो फिर ऐसी शिक्षा से क्या फ़ायदा, जिसका उद्देश्य केवल धन कमाना है। मेरा भी नाम कटवा दीजिए। मैं आपकी सेवा में रहना चाहता हूँ। मेरा इरादा खेती करने का है। अंजनी भी मेरी मदद करेगी। आखिर आप देहात में चलकर कुछ-न-कुछ खेती जरूर ही करायेंगे। मुझको इस काम के लिए तैयार कर दीजिए।

हरिबिलास के मुखमंडल पर आत्माभिमान की लाली दिखाई दी। सुमित्रा से बोले, लो श्रीबिलास ने तुम्हारी चिन्ताओं का अन्त कर दिया। तुम सोच रही थीं कि कैसे क्या होगा। चलकर आराम से गाँव में रहो। यह खेती करेगा, तुम आराम की नींद सोओ और राम का नाम लो।

इसके तीसरे ही दिन बाबू हरिबिलास अपने गाँव में आ गए। मकान बे-मरम्मत पड़ा हुआ था, आगे-पीछे घास जम गयी थी; गाँववालों ने द्वार पर खाद और कूड़े के ढेर लगा दिए थे। इधर वे कई साल से घर न आए थे। साफ बँगलों में रहने के आदी हो गए थे। उनके देखते यह घर झोंपड़े से भी बदतर था। शिवबिलास ने असबाब उतारा और झाड़ू लेकर द्वार की सफाई करने लगा। अंजनी भी घर में झाड़ू देने लगी। श्रीबिलास कुछ देर तक तो खड़ा देखता रहा, फिर टोकरी ले कर कूड़ा फेंकने लगा। गाँव में यह खबर फैल गयी कि हरिबिलास ने गाँधी महात्मा के हुक्म से इस्तीफा दे दिया। लोग इधर-उधर से आने लगे। कोई उनको सत्यवादी कहता था, कोई कहता था रिश्वत ली है, बर्खास्त हो गये हैं तो यह बहाना कर रहे हैं। हरिबिलास एक टूटी खाट पर उदास बैठे हुए थे, सुमित्रा भीतर खड़ी सोच रही थी कि यह कूड़े का पहाड़ क्यों कर हटेगा। पहले यह लोग जब घर आते थे तो गाँव के लोग संकोचवश इनके समीप न आते थे। इनके ठाटबाट की सामग्रियों को कौतूहल की दृष्टि से देखते थे, पर कुछ बोलने की हिम्मत न पड़ती थी। किन्तु अबकी वे विस्यमकारी वस्तुएँ न थीं, न लड़कों में वह शेखी थी, न हरिबिलास और सुमित्रा में वह बड़प्पन की ऐंठ। अतएव सब-के-सब उनसे सहानुभूति करने लगे। स्त्रियाँ अंजनी के साथ घर की सफाई करने लगीं, कई आदमियों ने शिवबिलास के हाथ से झाड़ू छीन लिया और कूड़ा फेंकने लगे।

रामभरोसे पंडित ने कहा, भैया भला कियो, इस्तीफा दे दिहेब, देश-विदेश मारे-मारे फिरते रहो। घर माटी में मिला जात रहा।

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