कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह) प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
10 पाठकों को प्रिय 154 पाठक हैं |
मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ
चौधरी जनता में स्वराज्यवाद का प्रचार करने लगे–मित्रो, स्वराज्य का अर्थ है अपना राज। अपने देश में अपना राज हो, तो वह अच्छा है कि किसी दूसरे का हो तो वह?
जनता ने कहा–अपना राज हो वह अच्छा है।
चौधरी–तो वह स्वराज्य कैसे मिलेगा? आत्मबल से, पुरुषार्थ से, मेल से। एक दूसरे से द्वेष छोड दो। अपने झगड़े आप मिलकर निपटा लो।
एक शंका–आप तो नित्य अदालत में खड़े रहते हैं।
चौधरी–हाँ, पर आज से अदालत जाऊँ, तो मुझे गऊहत्या का पाप लगे। तुम्हें चाहिए कि तुम अपनी गाढ़ी कमाई अपने बाल-बच्चों को खिलाओ और बचे तो परोपकार में लगाओ। वकील-मुखतार की जेब क्यों भरते हो, थानेदार को घूस क्यों देते हो, अमलों की चिरौरी क्यों करते हो? पहले हमारे लड़के अपने धर्म की शिक्षा पाते थे, वे सदाचारी, त्यागी, पुरुषार्थी बनते थे। अब वे विदेशी मदरसों में पढ़कर चाकरी करते हैं, घूस खाते हैं, शौक करते हैं। वे अपने देवताओं और पितरों की निंदा करते हैं, सिगरेट पीते हैं, बाल बढ़ाते हैं और हाकिमों की गोड़धरिया करते हैं। क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं है कि हम अपने बालकों को धर्मानुसार शिक्षा दें?
जनता–चंदा करके पाठशाला खोलनी चाहिए।
चौधरी–हम पहले मदिरा का छूना पाप समझते थे। अब गाँव-गाँव में, गली-गली में मदिरा की दूकानें हैं। हम अपनी गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये गाँजे-शराब में उड़ा देते हैं।
जनता–जो गाँव में दारू पिये, उसे डाँड़ लगाना चहिए।
|