लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

154 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


एक शंका–हमें राजकाज न चाहिए, हम अपनी ही खेती-बारी में मगन है, किसी के गुलाम तो नहीं।

दूसरी शंका–जो विद्या घमंडी बना दे, उससे मूरख ही अच्छा। यह नयी विद्या पढ़कर तो लोग सूट-बूट, घड़ी-छड़ी हैट-कोट लगाने लगते हैं, अपने शौक के पीछे देश का धन विदेशियों की जेब में भरते हैं। ये देश के द्रोही हैं।

भगत–गाँजा-शराब की ओर आजकल लोगों की कड़ी निगाह है। नशा बुरी लत है, इसे सब जानते हैं। सरकार को नशे की दूकानों से करोड़ों रुपये साल की आमदनी होती है। अगर दूकानों में जाने से लोगों की नशे की लत छूट जाय तो बड़ी अच्छी बात है, लेकिन लती की लत कहीं छूटती है? वह दुकान पर न जायगा तो चोरी-छिपे किसी-न-किसी तरह दूने-चौगुने दाम देकर, सजा काटने पर तैयार होकर, अपनी लत पूरी करेगा। तो ऐसा काम क्यों करो कि सरकार का नुकसान अलग हो और गरीब रैयत का नुकसान अलग हो। और फिर किसी-किसी को नशा खाने से फायदा होता है। मैं ही एक दिन अफीम न खाऊँ, तो गाँठो में दर्द होने लगे, दम उखड़ जाय और सर्दी पकड़ ले।

एक आवाज–शराब पीने से बदन में फुर्ती आ जाती।

एक शंका–सरकार अधर्म से रुपया कमाती है। उसे यह उचित नहीं। अधर्मी के राज में रहकर प्रजा का कल्याण कैसे हो सकता है?

दूसरी शंका–पहले दारू पिलाकर पागल बना दिया। लत पड़ी तो पैसे की चाट हुई। इतनी मजूरी किसको मिलती है कि रोटी कपड़ा भी चले, और दारू शराब भी उड़े? या तो बाल-बच्चो को भूखों मारो या चोरी करो, जुआ खेलो और बेइमानी करो। शराब की दूकान क्या है, हमारी गुलामी का अड्डा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book