लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

154 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


चौधरी उन्हें स्वराज्य विषयक उपदेश दे रहे थे। बार-बार भारतमाता की जयजयकार की ध्वनि उठती थी। एक ओर स्त्रियों का जमाव था। चौधरी ने उपदेश समाप्त किया, और अपनी गद्दी पर बैठे। स्वयं-सेवकों में भगतजी न जाने किधर से लपके हुए आये और श्रोताओं के सामने खड़े होकर उच्च स्वर में बोले–

‘भाइयो, मुझे यहाँ देख कर अचरज मत करो, मैं स्वराज्य का विरोधी नहीं हूँ। ऐसा पतित कौन प्राणी होगा, जो स्वराज्य का निन्दक हो, लेकिन इसके प्राप्त करने का वह उपाय नहीं है, जो चौधरी ने बतलाया है, और जिस पर तुम लोग लट्टू हो रहे हो। जब आपस में फूट और रार है तो पंचायतों से क्या होगा। जब विलासिता का भूत सिर पर सवार है, तो वह कैसे हटेगा ? मदिरा की दूकानों का बहिष्कार कैसे होगा? सिगरेट, साबुन, मोजे, बनियाइन, अद्धी, तंजेब से कैसे पिंड छूटेगा? जब रोब और हुकूमत की लालसा बनी हुई है, तो सरकारी मदरसे कैसे छोड़ोगे? विधर्मी शिक्षा की बेड़ी से कैसे मुक्त हो सकोगे? स्वराज्य लेने का केवल एक ही उपाय है, और वह आत्मसंयम है। यही महौषधि तुम्हारे समस्त रोगों को समूल नष्ट करेगी। आत्मा की दुर्बलता ही पराधीनता का मुख्य कारण है, आत्मा को बलवान बनाओ, इंद्रियों को साधो, मन को वश में करो, तभी तुममें भ्रातृभाव पैदा होगा, तभी भोग-विलास से मन हटेगा, तभी नशेबाजी का दमन होगा। आत्मबल के बिना स्वराज्य कभी उपलब्ध न होगा, स्वार्थ सब पापों का मूल है, यही तुम्हें अदालतों में ले जाता है, यही तुम्हें वधर्थी शिक्षा का दास बनाए हुए है। इस पिशाच को आत्मबल से और तुम्हारी कामना पूरी हो जायगी। सब जानते हैं, मैं ५० साल से अफीम का सेवन करता हूँ। आज से अफीम को गऊ का रक्त समझता हूँ। चौधरी से मेरी तीन पीढ़ियों की अदावत है। आज से चौधरी मेरे भाई हैं। आज से मुझे या मेरे घर के किसी प्राणी को घर के सूत से बुने हुए कपड़े के सिवा कुछ और पहनते देखो, तो मुझे जो दंड चाहो दो। बस मुझे यही कहना है, परमात्मा हम सबकी इच्छा पूरी करें।’

यह कहकर भगत जी घर की ओर चले कि चौधरी दौड़कर उनके गले से लिपट गए। तीन पुश्तों की अदावत एक क्षण में शान्त हो गयी।

उसी दिन से चौधरी और भगत साथ-साथ स्वराज्य का उपदेश करने लगे। उनमें गाढ़ी मित्रता हो गई और यह निश्चय करना कठिन है कि दोनों में जनता किसका अधिक सम्मान करती है।

प्रतिद्वन्द्विता की चिनगारी ने दोनों पुरुषों के हृदय-दीपक को प्रकाशित कर दिया था।

।। समाप्त।।

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book