लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

154 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


लाला साईंदास ने अखबार मेज पर रख दिया और आकाश की ओर देखा, जो निराशा का अंतिम आश्रय है। अन्य मित्रों ने भी यह समाचार पढ़ा। इस प्रश्न पर वाद-विवाद होने साईंदास पर चारों ओर से बौछारें पड़ने लगी। सारा दोष उनके सिर मढ़ा गया और उनकी चिरकाल की कार्य-कुशलता और परिणामदर्शिता मिट्टी में मिल गयी। बैंक इतना घाटा सहने में असमर्थ था। अब यह विचार उपस्थित हुआ कि कैसे उसकी प्राण-रक्षा की जाये।

ज्यों ही शहर में यह खबर फैली, लोग अपने रुपये वापस लेने के लिए आतुर हो गये। सुबह से शाम तक लेनदारों का ताँता लगा रहता था। जिन लोगों का धन चालू हिसाब में जमा था उन्होंने तुरन्त निकाल लिया, कोई उज्र न सुना। यह उसी पत्र के लेख का फल था कि नेशनल बैंक की साख उठ गयी थी। धीरज से काम लेते तो बैंक सँभल जाता, परंतु आँधी और तूफान में कौन-सी नौका स्थिर रह सकती है? अन्त में खजानची ने टाट उलट दिया। बैंक की नसों से इतनी रक्त धारें निकलीं कि वह प्राण-रहित हो गया।

तीन दिन बीत चुके थे। बैंक-घर के सामने सहस्त्रों आदमी एकत्र थे। बैंक के द्वार पर सशस्त्र सिपाहियों का पहरा था। नाना प्रकार की अफवाहें उड़ रहीं थीं। कभी खबर उड़ती, लाला साईंदास ने विषपान कर लिया। कोई उनके पकड़े जाने की सूचना लाता था। कोई कहता था, डाइरेक्टर हवालात के भीतर हो गये।

यकायक सड़क पर से एक मोटर निकली और बैंक के सामने आ कर रुक गयी। किसी ने कहा, बरहल के महाराज की मोटर है। इतना सुनते ही सैकड़ों मनुष्य मोटर की ओर घबराये हुए दौड़े और उन लोगों ने मोटर को घेर लिया।

कुँवर जगदीशसिंह महारानी की मृत्यु के बाद वकीलों से सलाह लेने लखनऊ आये थे। बहुत कुछ सामान भी खरीदना था। वे इच्छाएँ जो चिरकाल से ऐसे सुअवसर की प्रतीक्षा में थीं, अब बँधे पानी की भाँति राह पाकर उबली पड़ती थीं। यह मोटर आज ही ली गयी थी। नगर में एक कोठी लेने की बातचीत हो रही थी। बहुमूल्य विलास-वस्तुओं से लदी एक गाड़ी बरहल के लिए चल चुकी थी। यहाँ भीड़ देखी तो सोचा कोई नवीन नाटक होने वाला है। मोटर रोक दी इतने में सैकड़ों आदमियों की भीड़ लग गयी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book