कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
उमा कहाँ तो मुस्करा रही थी, कहाँ रुपये का नाम सुनते ही उसका चेहरा फक हो गया। गम्भीर स्वर में बोली–हमलोग इसी चिंता में पड़े हुए हैं। कहीं रुपये मिलने की आशा नहीं है; और उन्हें जनता से अपील करते संकोच होता है;
नईम–अजी, आप कहती क्या हैं? मैंने रुपये पाई-पाई वसूल कर लिए।
उमा ने चकित होकर कहा–सच! उनके पास रुपये कहाँ थे?
नईम–उनकी हमेशा से यही आदत है। आपसे कह रखा होगा, मेरे पास कौड़ी नहीं है। लेकिन मैंने चुटकियों में वसूल कर लिया! आप उठिए, खाने का इन्तजाम कीजिए।
उमा–रुपये भला क्या दिये होंगे! मुझे एतबार नहीं आता।
नईम–आप सरल हैं, और वह एक ही काइयाँ! उसे तो मैं ही खूब जानता हूँ। अपनी दरिद्रता के दुखड़े गा-गाकर आपको चकमा दिया करता होगा।
कैलास मुस्कराते हुए कमरे में आए और बोले–अच्छा अब निकलिए बाहर यहाँ भी अपनी शैतानी से बाज नहीं आये?
कैलास–फिर कभी बतला दूँगा। उठिए हजरत!
उमा–बताते क्यों नहीं, कहाँ मिले? मिरजाजी से कौन-सा परदा है?
कैलास–तुम उमा के सामने मेरी तौहीन करना चाहते हो?
नईम–तुमने सारी दुनिया के सामने मेरी तौहीन नहीं की?
कैलास–तुम्हारी तौहीन की तो उसके लिए २0 हजार रुपये नहीं देने पड़े?
नईम–मैं भी उसी टकसाल के रुपये दे दूँगा। उमा, मैं रुपये पा गया। इस बेचारे का परदा ढका रहने दो।
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