कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
नईम–नहीं, मैं सिर्फ एक चीज चाहता हूँ, सिर्फ एक चीज।
कैलास के कौतूहल की सीमा न रही। सोचने लगा, मेरे पास ऐसी कौन-सी बहुमूल्य वस्तु है? कहीं मुझसे मुसलमान होने को तो न कहेगा? यहाँ धर्म एक चीज है जिसका मूल्य एक से लेकर असंख्य तक रखा जा सकता है। जरा देखूँ तो, हजरत क्या कहते हैं?
उसने पूछा–क्या चीज?
नईम–मिसेज़ कैलास से एक मिनट तक एकांत में बातचीत करने की आज्ञा।
कैलास ने नईम् के सिर पर चपत जमाकर कहा–फिर वही शरारत सैकड़ों बार तो देख चुके हो, ऐसी कौन सी इन्द्र की अप्सरा है?
नईम–वह कुछ भी हो, मामला करते हो, तो करो; मगर याद रखना एकांत की शर्त है।
कैलास–मंजूर है। फिर जो डिक्री के रुपये माँगे गए, तो नोच ही खाऊँगा।
नईम–हाँ, मंजूर है।
कैलास–(धीरे से) मगर यार, नाजुक-मिजाज स्त्री है; कोई बेहुदा मजाक न कर बैठना।
नईम–जी, इन बातों में मुझे आपके उपदेश की जरूरत नहीं। मुझे उनके कमरे में चलिए!
कैसाल–सिर नीचे किए रहना।
नईम–अजी, आँखों में पट्टी बाँध दो।
कैलास के घर में परदा न था। उमा चिंता-मग्न बैठी हुई थी। सहसा नईम और कैलास को देखकर चौंक पड़ी। बोली–आइए मिरजाजी, अबकी तो बहुत दिनों में याद किया।
कैलास नईम को वहीं छोड़कर कमरे के बाहर निकल आया लेकिन परदे की आड़ से छिपकर देखने लगा। इनमें क्या बातें होती हैं। उसे कुछ बुरा खयाल न था, केवल कौतूहल था।
नईम–हम सरकारी आदमियों को इतनी फुरसत कहाँ? डिक्री के रुपये वसूल करने थे, इसीलिए चला आया हूँ।
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