कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
|
317 पाठक हैं |
नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
लेकिन शंकर चुपचाप देखने के शिवा और कुछ न कर सकता था। वह गेहूँ के दाने किसी देवता के शाप की भाँति यावज्जीवन उसके सिर से न उतरे।
शंकर ने विप्र जी के यहाँ २॰ वर्ष तक गुलामी करने के बाद इस दुस्सार संसार से प्रस्थान किया। १२॰ रु. अभी तक उसके सिर पर सवार थे। पंडित जी ने उस गरीब को ईश्वर के दरबार में कष्ट देना उचित न समझा। इतने अन्यायी, इतने निर्दय न थे। उसके जवान बेटे की गर्दन पकड़ी। आज तक वह विप्र जी के यहाँ काम करता है, उसका उद्धार कब होगा, होगा भी या नहीं, ईश्वर ही जाने।
पाठक! इस वृत्तांत को कपोल-कल्पित न समझिए। यह सत्य घटना है। ऐसे शंकरों और विप्रों से दुनियाँ खाली नहीं हुई है!
सुजान भगत
सीधे-सादे किसान, धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते है। दिव्य समाज की भाँति वे पहले अपने भोगविलास की ओर नहीं दौड़ते। सुजान की खेती में कई साल से कंचन बरस रहा था। मेहनत तो गाँव के सभी किसान करते थे, पर सुजान के चंद्रमा बली थे, ऊसर में भी दाना छींट आता, तो कुछ-न-कुछ पैदा हो जाता था। तीन वर्ष लगातार ऊख लगती गई। इधर गुड़ का भाव तेज था, कोई दो-ढाई हजार हाथ में आ गए। बस, चित्त की वृत्ति धर्म की ओर झुक पड़ी।
साधु-संतों का आदर-सत्कार होने लगा, द्वार पर धूनी जलने लगी। कानूनगो इलाके में आते, तो सुजान महतो के चौपाल में ठहरते। हल्के के हेड कांस्टेबिल, थानेदार, शिक्षाविभाग के अफसर, एक-एक उस चौपाल में पड़ा ही रहता। महतो मारे खुशी के फूला न समाते। धन्य! भाग्य! उनके द्वार पर अब इतने बड़े-बड़े हाकिम आकर ठहरते हैं। जिन हाकिमों के सामने उसका मुँह न खुलता था, उन्हीं की अब ‘महतो-महतो’ कहते जबान सूखती थी। कभी-कभी भजन-भाव हो जाता। एक महात्मा ने डौल अच्छा देखा, तो गाँव में आसन जमा दिया। गाँजे और चरस की बहार उड़ने लगी। एक ढोलक आयी, मँजीरे मँगवाये गये सत्संग होने लगा। यह सब सुजान के दम का जलूस था। घर में सेरों दूध होता; मगर सुजान के कंठ
|