कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
-तले एक बूँद जाने की भी कसम थी। कभी हाकिम लोग चखते कभी महात्मा लोग।
किसान को दूध-घी से क्या मतलब? उसे तो रोटी और साग चाहिए। सुजान की नम्रता का अब वारापार न था। सबके सामने सिर झुकाए रहता, कहीं लोग यह न कहने लगें। कि धन पाकर इसे घमंड हो गया है। गाँव में कुल तीन ही कुँए थे, बहुत-से खेतों में पानी न पहुँचता था, मारी जाती थी, सुजान ने एक पक्का कुआँ बनवा दिया। कुएँ का विवाह हुआ, यज्ञ हुआ, ब्रह्मभोज हुआ। जिस दिन कुएँ पर पहली बार पुर चला, सुजान को मानो चारों पदार्थ मिल गए। जो काम गाँव में किसी ने न किया था, वह बाप-दादा के पुराण-प्रताप से सुजान ने कर दिखाया।
एक दिन गाँव में गया के यात्री आकर ठहरे। सुजान ही के द्वार पर उनका भोजन बना। सुजान के मन में भी गया करने की बहुत दिनों से इच्छा थी। यह अच्छा अवसर देखकर वह भी चलने के लिए तैयार हो गया।
उसकी स्त्री बुलाकी ने कहा–अभी रहने दो, अगले साल चलेंगे।
सुजान ने गम्भीर भाव से कहा–अगले साल क्या होगा, कौन जानता है? धर्म के काम में मीन-मेख निकालना अच्छा नहीं। जिंदगानी का क्या भरोसा?
बुलाकी–हाथ खाली हो जाएगा।
सुजान–भगवान की इच्छा होगी, तो फिर रुपये हो जाएँगे, उनके यहाँ किस बात की कमी है।
बुलाकी इसका क्या जवाब देती? सत्कार्य में बाधा डालकर अपनी मुक्ति क्यों बिगाड़ती! प्रातःकाल स्त्री और पुरुष गया करने चले। वहाँ से लौटे, तो यज्ञ और ब्रह्मभोज की ठहरी। सारी बिरादरी निमंत्रित हुई, ग्यारह गाँवों में सुपारी बँटी। इस, धूम-धाम से कार्य हुआ कि चारों ओर वाह-वाह मच गई। सब यही कहते कि भगवान धन दे, तो दिल भी ऐसा ही दे। घमंड तो छू नहीं गया। अपने हाथ से पत्तल उठाता फिरता था, कुल का नाम जगा दिया। बेटा हो तो ऐसा। बाप मरा तो घर में भूनी भाँग नहीं थी। अब लक्ष्मी घुटने तोड़कर आ बैठी है!
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