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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


लीलाधर–इसलिए कि हम पतित हो गये हैं। अज्ञान में पड़कर उन महात्माओं को भूल गए हैं।

बूढ़ा–अब तो आपकी निद्रा टूटी है, हमारे साथ भोजन करोगे?

लीलाधर–मुझे कोई आपत्ति नहीं है।

बूढ़ा–मेरे लड़के से अपनी कन्या का विवाह कीजिएगा?

लीलाधर–जब तक तुम्हारे जन्म-संस्कार न बदल जाएँ, जब तक तुम्हारे आहार-व्यवहार में परिवर्तन न हो जाए, हम तुमसे विवाह का सम्बन्ध नहीं कर सकते। माँस खाना छोड़ो, मदिरा पीना छो़ड़ो, शिक्षा ग्रहण करो, तभी तुम उच्च वर्ग के हिंदुओं में मिल सकते हो।

बूढ़ा–हम कितने ही ऐसे कुलीन ब्राह्मणों को जानते हैं, जो रात-दिन नशे में डूबे रहते हैं, माँस के बिना कौर नहीं उठाते; और कितने ही ऐसे हैं, जो एक अक्षर भी नहीं पढ़े हैं, आपकों उनके साथ भोजन करते देखता हूँ। उनसे विवाह सम्बन्ध करने में आपको कदाचित् इन्कार न होगा। जब आप खुद अज्ञान में पड़े हुए हैं, तो हमारा उद्धार कैसे कर सकते हैं? आपका हृदय अभी तक अभिमान से भरा हुआ है। जाइए, अभी कुछ दिन और अपनी आत्मा का सुधार कीजिए। हमारा उद्धार आप के किए न होगा। हिन्दू समाज में रह कर हमारे माथे से नीचता का कंलक न मिटेगा। हम कितने ही विद्वान, कितने ही आचारवान् हो जाएँ, हमें यों ही समझते रहेंगे। हिंदुओं की आत्मा मर गई है, और उसका स्थान अहंकार ने लिया है। हम अब उस देवता की शरण में जा रहे हैं, जिनके मानने वाले हमसे गले मिलने को आज ही तैयार हैं। वे यह नहीं कहते कि तुम अपने संस्कार बदल कर आओ। हम अच्छे हैं या बुरे, वे इसी आशा में हमें अपने पास बुला रहे हैं। आप अगर ऊँचे हैं तो ऊँचे बने रहिए। हमें उड़ना नहीं आता। हम उन लोगों के साथ रहेंगे, जिनके साथ हमें उड़ना न पड़ेगा।

लीलाधर–एक ऋषि-संतान के मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा है। वर्ण-भेद तो ऋषियों ही का किया हुआ है। उसे तुम कैसे मिटा सकते हो?

बूढ़ा–ऋषियों को मत बदनाम कीजिए। यह सब पाखंड आप लोगों का रचा हुआ है। आप कहते हैं, तुम मदिरा पीते हो; लेकिन आप मदिरा पीनेवालों की जूतियाँ चाटते हैं। आप हमसे माँस खाने के कारण घिनाते हैं, लेकिन बलवान गौ-माँस खानेवालों के सामने नाक रगड़ते हैं। इसी लिए न कि वे आपसे बलवान हैं? हम भी आज राजा हो जाएँ, तो आप हमारे सामने हाथ बाँधे खड़े होंगे। आपके धर्म में वही ऊँचा है, जो बलवान है, वही नीच है, जो निर्बल है। यही आपका धर्म है?

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