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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


यह कहकर बूढ़ा वहाँ से चला गया, और उसके साथ ही लोग भी उठ खड़े हुए। केवल चौबेजी और उनके दलवाले मंच पर रह गये, मानो गान समाप्त हो जाने के बाद उसकी प्रतिध्वनि वायु में गूँज रही हो।

तबलीगवालों ने जब से चौबेजी के आने की खबर सुनी थी, इस फिक्र में थे कि किसी उपाय से इन सबको यहाँ से दूर करना चाहिए। चौबेजी का नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। जानते थे, यह यहाँ जम गया, तो हमारी सारी की-करायी मेहनत व्यर्थ हो जाएगी। इसके कदम यहाँ जमने न पाएँ। मुल्लाओं ने उपाय सोचना शुरू किया। बहुत वाद-विवाद, उज्जत और दलील के बाद निश्चय हुआ कि इस काफिर को कत्ल कर दिया जाए। ऐसा सबाब लूटने के लिए आदमियों की क्या कमी? उसके लिए तो जन्नत का दरवाजा खुल जाएगा, हूरें उसकी बलाएँ लेंगी, फरिश्ते कदमों की खाक का सुरमा बनाएँगे, रसूल उसके सर पर बरकत का हाथ रखेंगे। खुदावंत करीम उसे सीने से लगाएँगे और कहेंगे–तू मेरा प्यारा दोस्त है। दो हट्टे-कट्टे जवानों ने तुरन्त बीड़ा उठा लिया।

रात के दस बज गए थे। हिन्दू-सभा के कैम्प में सन्नाटा था। केवल चौबेजी अपनी रावटी में बैठे हिन्दू-सभा के मंत्री को पत्र लिख रहे थे–यहाँ सबसे बड़ी आवश्यकता धन की है। रुपया, रुपया, रुपया! जितना भेज सकें भेजिए। डेपुटेशन भेज कर वसूल कीजिए, मोटे महाजनों की जेब टटोलिए, भिक्षा माँगिए। बिना धन के उद्धार न होगा। जब तक कोई पाठशाला न खुले, कोई चिकित्सालय स्थापित न हो, कोई वाचनालय न हो, उन्हें कैसे विश्वास आएगा कि हिंदु-सभा उनकी हितचिंतक है। तबलीगवाले जितना खर्च कर रहे हैं उसका आधा भी मुझे मिल जाए, तो हिंदू-धर्म की पताका फहराने लगे। केवल व्याख्यानों से काम न चलेगा। असीसों से कोई जिंदा नहीं रहता।

सहसा किसी की आहट पाकर वह चौंक पड़े। आँखें ऊपर उठायीं तो देखा, दो आदमी सामने खड़े हैं। पंडितजी ने शंकित होकर पूछा–तुम कौन हो, क्या काम है?

उत्तर मिला–हम इजराईल के फरिश्ते हैं तुम्हारी रूह कब्ज करने आये हैं। हजरत इजराईल ने तुम्हें याद किया।

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