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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


एक बार तीन दिन तक चिंता को अपने पिता की खबर न मिली। वह एक पहाड़ की खोह में बैठी मन ही मन एक ऐसा किला बना रही थी जिसे शत्रु किसी भाँति जान न सके। दिन भर वह उसी किले का नक्शा सोचती और रात को उसी किले का स्वप्न देखती। तीसरे दिन संध्या-समय उसके पिता के कई साथियों ने आकर उसके सामने रोना शुरू किया। चिंता ने विस्मित होकर पूछा दादा जी कहाँ हैं? तुम लोग क्यों रोते हो?

किसी ने इसका उत्तर न दिया वे जोर से धाड़े मार-मार कर रोने लगे। चिंता समझ गयी उसके पिता ने वीर गति पायी है। उस तेरह वर्ष की बालिका की आँखों से आँसू की एक बूँद भी न गिरी, मुख जरा भी मलिन न हुआ एक आह भी न निकली हँसकर बोली अगर उन्होंने वीर गति पायी, तो तुम लोग रोते क्यों हो? योद्धाओं के लिए इससे बढ़कर उनकी वीरता का और क्या पुरस्कार मिल सकता है? यह रोने का नहीं आनंद मनाने का अवसर है।

एक सिपाही ने चिंतित स्वर में कहा–हमें तुम्हारी चिंता है। तुम अब कहाँ रहोगी?

चिंता ने गम्भीरता से कहा–इसकी तुम चिंता न करो! मैं अपने बाप की बेटी हूँ। जो कुछ उन्होंने किया है वही मैं भी करूँगी। अपनी मातृ-भूमि को शत्रुओं के छुड़ाने में उन्होंने प्राण दे दिए। मेरे सामने वही आदर्श है। जाकर अपने-अपने आदमियों को सँभालिए। मेरे लिए एक घोड़े और हाथियारों का प्रबंध कर दीजिए। ईश्वर ने चाहा, तो आप लोग मुझे किसी से पीछे न पाएँगे। लेकिन यदि मुझे पीछे हटते देखना, तो तलवार के एक हाथ से इस जीवन का अन्त कर देना। यही मेरी आपसे विनय है। जाइए, अब न विलम्ब कीजिए।

सिपाहियों को चिंता के ये वीर वचन सुनकर कुछ भी आश्चर्य नहीं हुआ, हाँ, उन्हें यह सन्देह अवश्य हुआ कि क्या यह कोमल बालिका अपने संकल्प पर दृढ़ रह सकेगी?

पाँच वर्ष बीत गए। समस्त प्रान्त में चिंता देवी की धाक बैठ गई। शत्रुओं के कदम उखड़ गए। वह विजय की सजीव मूर्ति थी, उसे तीरों और गोलियों के सामने निःशंक खड़े देखकर सिपाहियों को उत्तेजना मिलती रहती थी। उसके सामने वे कैसे कदम पीछे हटाते? जब कोमलांगी युवती आगे बढ़े तो कौन पुरुष कदम पीछे हटाएगा? सुंदरियों के सम्मुख योद्वाओं के लिए आत्म समर्पण के गुप्त संदेश हैं, उसकी एक चितवन कायरों में पुरुषत्व प्रवाहित कर देती है। चिंता की छवि और कीर्ति ने मनचले सूरमों को चारों ओर से खीचं-खींचकर उसकी सेना को सजा दिया, जान पर खेलनेवाले भौंरे चारों ओर से आ-आकर इस फूल पर मँडलाने लगे।

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