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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


औरत ने रोकर कहा–बहूजी, जिस दिन से आपके पास से आटा लेकर गये हैं, उसी दिन से बीमार पड़े हैं। बस भैया-भैया किया करते हैं। भैया ही में उनका मन बसा रहता है। चौंक-चौंककर ‘भैया! भैया!’ कहते हुए द्वार की ओर दौड़ते हैं। न जाने उन्हें क्या हो गया है बहूजी। एक मुझसे कुछ कहा–न-सुना, घर से चल दिए, और एक गली में छिपकर भैया को देखते रहे। जब भैया ने उन्हें देख लिया तो भागे। तुम्हारे पास आते हुए लजाते हैं।

मैंने कहा–हाँ, हाँ मैंने उस दिन तुमसे जो कहा था अम्माँजी।

अम्माँ–घर में कुछ खाने-पीने को है?

औरत–हाँ बहूजी तुम्हारे आशीर्वाद से खाने-पीने का दुख नहीं है। आज सबेरे उठे और तालाब की ओर चले गए। बहुत कहती रही, बाहर मत जाओ हवा लग जाएगी मगर न माने। मारे कमजोरी के पैर काँपने लगते हैं। मगर तालाब में घुसकर ये कमलगट्टे तोड़ लाए। तब मुझसे कहा, ले जा भैया को दे आ। उन्हें कमलगट्टे बहुत अच्छे लगते हैं। कुसल-छेम पूछती आना।

मैंने पोटली से कमलगट्टे निकाल लिए थे और मजे से चख रहा था। अम्माँ ने बहुत आँखें दिखायीं, मगर इतना सब्र कहां!

अम्माँ ने कहा–कह देना, सब कुशल है।

मैंने कहा–कह देना भैया ने बुलाया है। न जाओगे तो फिर तुमसे कभी न बोलेंगे, हाँ!

बाबूजी खाना खाकर निकल आए थे। तौलिए से हाथ-मुँह पोंछते हुए बोले–और यह भी कह देना कि साहब ने तुमको बहाल कर दिया है। जल्दी जाओ, नहीं तो दूसरा आदमी रख लिया जाएगा।

औरत ने अपना कपड़ा उठाया और चली गई। अम्माँ ने बहुत पुकारा पर वह न रुकी। शायद अम्माँ उसे सीधा देना चाहती थीं। अम्माँ ने पूछा–सचमुच बहाल हो गया?

बाबूजी–और क्या झूठे ही बुला रहा हूँ। मैंने तो पाँचवें ही दिन उसकी बहाली कि रिपोर्ट की थी।

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