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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


अम्माँ–यह तुमने बहुत अच्छा किया।

बाबूजी–उसकी बीमारी की यही दवा है।

प्रातःकाल मैं उठा तो देखा कि कजाकी लाठी टेकता हुआ चला आ रहा है। वह बहुत दुबला हो गया था। मालूम होता था, बूढ़ा हो गया है। हरा-भरा पेड़ सूखकर ठूँठ हो गया था। मैं उसकी ओर दौड़ा, और उसकी कमर से चिमट गया। कजाकी ने मेरे गाल चूमे, और मुझे उठाकर कंधे पर बैठाने की चेष्टा करने लगा। पर मैं न उठ सका। तब वह जानवरों की भाँति भूमि पर हाथों और घुटनों के बल खड़ा हो गया, और मैं उसकी पीठ पर सवार होकर डाकखाने की ओर चला। मैं उस वक्त फूला न समाता था, और शायद कजाकी मुझसे भी ज्यादा खुश था।

बाबूजी ने कहा–कजाकी, तुम बहाल हो गए। अब कभी देर न करना। कजाकी रोता हुआ पिताजी के पैरों पर गिर पड़ा। मगर शायद मेरे भाग्य में दोनों सुख भोगना न लिखा था–मुन्नू मिला तो कजाकी छूटा; कजाकी आया तो मुन्नू हाथ से ऐसा गया कि आज तक उसके जाने का दुःख है। मुन्नू मेरी ही थाली में खाता था। जब तक मैं खाने न बैठूँ वह भी कुछ न खाता था। उसे भात से बहुत ही रुचि थी, लेकिन जब तक खूब घी न पड़ा हो उसे संतोष न होता था। वह मेरे ही साथ सोता भी था, और मेरे ही साथ उठता भी। सफाई तो उसे इतनी पसंद थी कि मल-मूत्र त्याग करने के लिए घर से बाहर मैदान में निकल जाता था। कुत्तों से उसे चिड़ थी। कुत्तों को घर में न घुसने देता था। कुत्ते को देखते ही थाली से उठ जाता और उसे दौड़ाकर घर से बाहर निकाल देता था।

कजाकी को डाकखाने में छोड़कर जब मैं खाना खाने गया, तो मुन्नू भी आ बैठा। अभी दो-चार ही कौर खाये थे कि एक बड़ा-सा झबरा कुत्ता आंगन में दिखाई दिया। मुन्नू उसे देखते ही दौड़ा। दूसरे घर में जाकर कुत्ता चूहा हो जाता है। झबरा कुत्ता उसे आता देखकर भागा। मुन्नू को अब लौट आना चाहिए था। मगर वह कुत्ता उसके लिए यमराज का दूत था। मुन्नू को उसे घर से निकालकर ही संतोष न हुआ। वह उसे रोज घर के बाहर मैदान में भी दौड़ाने लगा। मुन्नू को शायद ख्याल न रहा कि यहाँ मेरी अमलदारी नहीं है। वह उस क्षेत्र में पहुँच गया था, जहाँ झबरे का भी उतना ही अधिकार था, जितना मुन्नू का।

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