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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


अंत में मुसलमानों ने चारों तरफ से घेरकर उसे गिरफ्तार करने की तैयारी की। सेनाओं ने उसके इलाके को घेर लिया। दाऊद को प्राण-रक्षा के लिए अपने सम्बन्धियों के साथ भागना पड़ा। वह घर से भागकर गरनाता में आया, जहाँ उन दिनों इसलामी राजधानी थी। वहाँ सबसे अलग रहकर वह अच्छे दिनों की प्रतीक्षा में जीवन व्यतीत करने लगा। मुसलमानों के गुप्तचर उसका पता लगाने के लिए बहुत सिर मारते थे। उसे पकड़ लाने के लिए बड़े-बड़े इनामों की विज्ञात्ति निकाली जाती थी, पर दाऊद की टोह न मिलती थी।

एक दिन एकांतवास से उकताकर दाऊद गरनाता के एक बाग में सैर करने चला गया। संध्या हो गई थी। मुसलमान नीची अबाएँ पहने, बड़े-बड़े अमामे सिर पर बाँधे, कमर में तलवार लटकाए रविशों में टहल रहे थे। स्त्रियाँ सफेद बुरके ओढ़े, जरी की जूतियाँ पहने बेचों और कुर्सियों पर बैठी हुईं थीं। दाऊद सबसे अलग हरी-हरी घास पर लेटा हुआ सोच रहा था कि वह दिन कब आएगा, जब हमारी जन्मभूमि इन अत्याचारियों के पंजे से छूटेगी! वह अतीत काल की कल्पना कर रहा था। जब ईसाई स्त्री और पुरुष इन रविशों में टहलते होंगे, जब यह स्थान ईसाइयों के परस्पर वाग्विलास से गुलजार होता होगा।

सहसा एक मुसलमान युवक दाऊद के पास आकर बैठ गया। वह उसे सिर से पैर तक अपमानसूचक दृष्टि से देखकर बोला–क्या अभी तक तुम्हारा हृदय इस्लाम की ज्योति से प्रकाशित नहीं हुआ?

दाऊद ने गंभीर भाव से कहा–इस्लाम की ज्योति पर्वत श्रृंगों को प्रकाशित कर सकती है, अँधेरी घाटियों में उसका प्रवेश नहीं हो सकता।

उस मुसलमान अरबी का नाम जमाल था। यह आक्षेप सुनकर तीखे स्वर में बोला–इससे तुम्हारा क्या मतलब है?

दाऊद–इससे मेरा मतलब यही है कि ईसाइयों में जो लोग उच्च श्रेणी के हैं, वे जागीरों और राज्याधिकारों के लोभ तथा राजदंड के भय से इसलाम की शरण में आ सकते हैं; पर दुर्बल और दीन ईसाईयों के लिए इसलाम में वह आसमान की बादशाहत कहाँ है, जो हजरत मसीह के दामन में उन्हें नसीब होगी! इसलाम का प्रचार तलवार के बल से हुआ है, सेवा के बल से नहीं।

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