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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


जमाल अपने धर्म का अपमान सुनकर तिलमिला उठा। गरम होकर बोला–यह सर्वथा मिथ्या है। इसलाम की शक्ति आंतरिक भ्रातृत्व और साम्य है, तलवार नहीं।

दाऊद–इस्लाम ने धर्म के नाम पर जितना रक्त बहाया है, उसमें काफी सारी मसजिदें डूब जाएँगी।

जमाल–तलवार ने सदा सत्य की रक्षा की है।

दाऊद ने अविचलित भाव से कहा–जिसको तलवार का आश्रय लेना पड़े, वह सत्य ही नहीं।

जमाल भारतीय गर्व से उन्मत्त होकर बोला–जब तक लोग मिथ्या के भक्त रहेंगे, तब तक तलवार की जरूरत भी रहेगी।

दाऊद–तलवार का मुँह ताकनेवाला सत्य ही मिथ्या है।

अरब ने तलवार के कब्जे पर हाथ रखकर कहा–खुदा की कसम, अगर तुम निहत्थे न होते, तो तुम्हें इसलाम की तौहीन करने का मजा चखा देता।

दाऊद ने अपनी छाती में छिपाई हुई कटार निकालकर कहा–नहीं, मैं निहत्था नहीं हूँ। मुसलमानों पर जिस दिन इतना विश्वास करूँगा, उस दिन ईसाई न रहूँगा। तुम अपने दिल के अरमान निकाल लो।

दोनों ने तलवारें खींच लीं। एक दूसरे पर टूट पड़े। अरब की भाँति फन से चोट करती थी, दूसरी नागिन की भाँति उड़ती थी, एक लहरों की भाँति लपकती थी, दूसरी जल की मछलियों की भाँति चमकती थी। दोनों योद्धाओं में कुछ देर तक चोटें होती रहीं। सहसा एक बार नागिन उछलकर अरब के अन्तस्तल में जा पहुँची। वह भूमि पर गिर पड़ा।

जमाल के गिरते ही चारों तरफ से लोग दौड़ पड़े। वे दाऊद को घेरने की चेष्टा करने लगा। दाऊद ने देखा, लोग तलवारें लिये दौड़े चले आ रहे हैं। प्राण लेकर भागा। पर जिधर जाता था, सामने बाग की दीवार रास्ता रोक लेती थी। दीवार ऊँची थी, उसे फाँदना मुश्किल था। यह जीवन और मृत्यु का संग्राम था। कहीं शरण की आशा नहीं, छिपने का स्थान नहीं। उधर अरबी की रक्त-पिपासा प्रतिक्षण तीव्र होती जाती थी। यह केवल एक अपराधी को दंड देने की चेष्टा न थी। जातीय अपमान का बदला था। एक विजित ईसाई की यह हिम्मत कि अरब पर हाथ उठाए! ऐसा अनर्थ!

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