कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
मगर अरबों को इतना अवकाश कहाँ था कि सावधान होकर शिला के नीचे देखते। वहाँ तो हत्यारे को पकड़ने की जल्दी थी। दाऊद के सिर से बला टल गई। वे इधर-उधर झाँककर आगे बढ़ गए।
अँधेरा हो गया। आकाश में तारागण निकल आए, और तारों के साथ दाऊद भी शिला के नीचे से निकला। देखा तो उस समय भी चारों तरफ हलचल मची हुई है, शत्रुओं का दल मशालें लिये झाड़ियों में घूम रहा है। नाकों पर भी पहरा है, कहीं निकल भागने का रास्ता नहीं है। दाऊद एक वृक्ष के नीचे खड़ा होकर सोचने लगा कि अब क्योंकर जान बचे। उसे अपनी जान की वैसी परवाह न थी। वह जीवन के सुख-दुख सब भोग चुका था। अगर उसे जीवन की लालसा थी तो केवल यही देखने के लिए कि इस संग्राम का अंत क्या होगा। मेरे देशवासी हतोत्साह हो जाएँगे, या अदम्य धैर्य के साथ संग्राम-क्षेत्र में अटल रहेंगे।
जब रात अधिक बीत गई, और शत्रुओं की घातक चेष्टा कुछ कम न होती दीख पड़ी, तो दाऊद खुदा का नाम लेकर झाड़ियों से निकला, और दबे पाँव, वृक्षों की आड़ में आदमियों की नजरें बचाता हुआ, एक तरफ को चला। वह इन झाड़ियों से निकलकर बस्ती में पहुँच जाना चाहता था। निर्जनता किसी की आड़ नहीं कर सकती। बस्ती का जन-बाहुल्य स्वयं आड़ है।
कुछ दूर तक तो दाऊद के मार्ग में कोई बाधा न उपस्थित हुई, वन के वृक्षों ने उसकी रक्षा की; किंतु जब वह असमतल भूमि से निकलकर समतल भूमि पर आया, तो एक अरब की निगाह उस पर पड़ गई। उसने ललकारा दाऊद भागा। ‘कातिल भागा जाता है!’ यह आवाज हवा में एक ही बार गूँजी, और क्षण-भर में चारों तरफ से अरबों ने उसका पीछा किया। सामने बहुत दूर तक आबादी का नामोनिशान न था। बहुत दूर पर एक धुँधला-सा दीपक टिमटिमा रहा था। किसी तरह वहाँ तक पहुँच जाऊँ! वह उस दीपक की ओर इतनी तेजी से दौड़ रहा था, मानो वहाँ पहुँचते ही अभय पा जाएगा। आशा उसे उड़ाए लिए जाती थी। अरबों का समूह पीछे छूट गया, मशालों की ज्योति निष्प्रभ हो गई। केवल तारागण उसके साथ दौड़े चले जाते थे। अंत को वह आशामय दीपक सामने आ पहुँचा। एक छोटा-सा फूस का मकान था। एक बूढ़ा अरब जमीन पर बैठा हुआ, रेहल पर कुरान रक्खे उसी दीपक के मंद प्रकाश में पढ़ रहा था। दाऊद आगे न जा सका उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया। वह वहीं शिथिल होकर गिर पड़ा। रास्ते की थकान घर पहुँचने पर मालूम होती है।
अरब ने उठकर पूछा–तू कौन है?
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