कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
जिस तरह पीछा करने वाले कुत्तों के सामने गिलहरी इधर-उधर दौड़ती है, किसी वृक्ष पर चढ़ने की बार-बार चेष्टा करती है, पर हाथ-पाँव फूल जाने के कारण बार-बार गिर पड़ती है, वही दशा दाऊद की थी।
दौड़ते-दौड़ते उसका दम फूल गया; पैर मन-मन भर के हो गए। कई बार जी में आया, इन सब पर टूट पड़े, और जितने महँगे प्राण बिक सकें, उतने महँगे बेचे। पर शत्रुओं की संख्या देखकर हतोत्साहित हो जाता था।
‘लेना, दौड़ना, पकड़ना’ का शोर मचा हुआ था। कभी-कभी पीछा करने वाले इतने निकट आ जाते हैं कि मालूम होता है कि अब संग्राम का अन्त हुआ, वह तलवार पड़ी; पर पैरों की एक ही गति, एक कावा, एक कन्नी उसे खून की प्यासी तलवारों से बाल-बाल बचा लेती थी।
दाऊद को इस संग्राम में खिलाड़ियों का-सा आनन्द आने लगा। यह निश्चय था कि उसके प्राण नहीं बच सकते मुसलमान दया करना नहीं जानते, इसलिए उसे अपने दाँव-पेंच में मजा आ रहा था। किसी वार से बचकर उसे अब इसकी खुशी न होती थी कि उसके प्राण बच गए, बल्कि इसका आनन्द होता था कि उसने कातिल को कैसा ज़िच किया।
सहसा उसे अपनी दाहिनी ओर बाग की दीवार कुछ नीची नजर आयी। आह! यह देखते ही उसके पैरों में एक नई शक्ति का संचार हो गया, धमनियों में नया रक्त दौड़ने लगा। वह हिरन की तरह उस तरफ दौड़ा और एक छलांग में बाग के उस पार पहुँच गया। जिंदगी और मौत में सिर्फ एक कदम का फासला था। पीछे मृत्यु और आगे जीवन का विस्तृत क्षेत्र। जहाँ तक कहीं नीची जगह-जगह पत्थर की शिलाएं पड़ी हुई थी। दाऊद एक शिला के नीचे छिपकर बैठ गया।
दम-भर में पीछा करने वाले भी वहाँ आ पहुँचे, और इधर-उधर झाड़ियों में वृक्षों पर गड्ढों में शिलाओं के नीचे तलाश करने लगे। एक अरब उस चट्टान पर आकर खड़ा हो गया, जिसके नीचे दाऊद छिपा हुआ था। दाऊद का कलेजा धक-धक कर रहा था। अब जान गई। अरब ने जरा नीचे को झाँका और प्राणों का अंत हुआ! संयोग, केवल संयोग पर उसका जीवन निर्भर था। दाऊद ने साँस रोक ली, सन्नाटा खींच लिया। एक निगाह पर उसकी जिन्दगी का फैसला था। जिंदगी और मौत में कितना समीप्य है!
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