कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
यह कहकर अरब ने दाऊद का हाथ पकड़ लिया, और उसे घर में ले जाकर एक कोठरी में छिपा दिया! वह घर से बाहर निकला ही था कि अरबों का एक दल उसके द्वार पर आ पहुँचा। एक आदमी ने पूछा–क्यों शेख हसन, तुमने इधर से किसी को भागते देखा है?
‘हाँ देखा है।’
‘उसे पकड़ क्यों न लिया व तो ज़माल का कातिल था।’
‘यह जानकर भी मैंने उसे छोड़ दिया।’
‘ऐं! ग़जब खुदा का, यह तुमने क्या किया? जमाल हिसाब के दिन हमारा दामन पकड़ेगा तो हम क्या जवाब देंगे?
‘तुम कह देना कि तेरे बाप ने तेरे कातिल को माफ़ कर दिया।’
‘अरब ने कभी कातिल का खून नहीं माफ़ किया।’
‘यह तुम्हारी जिम्मेदारी है मैं उसे अपने सिर क्यों लूँ?’
अरबों ने शेख हसन से ज्यादा हुज्जत न की, कातिल की तलाश में दौड़े। शेख हसन फिर चटाई पर बैठकर कुरान पढ़ने लगा। लेकिन उसका मन पढ़ने में न लगता था। शत्रु से बदला लेने की प्रवृत्ति अरबों की प्रकृति में वद्धमूल होती थी। खून का बदला खून था। इसके लिए नदियाँ बह जाती थीं, कबीले-के-कबीले मर मिटते थे, शहर-के-शहर वीरान हो जाते थे। उस प्रवृत्ति पर विजय पाना शेख हसन को असाध्य-सा प्रतीत हो रहा था। बार-बार प्यारे पुत्र की सूरत उसकी आँखों के सामने फिरने लगती थी। बार-बार उसके मन में प्रबल उत्तेजना होती थी कि चलकर दाऊद के खून से अपने क्रोध की आग बुझाऊँ। अरब वीर होते थे। कटना मरना उनके लिए कोई असाधारण बात न थी।
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