कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
मरनेवालों के लिए वे आँसुओं की कुछ बूँदे बहाकर फिर अपने काम में प्रवृत्त हो जाते थे। वे मृत व्यक्ति की स्मृति को केवल उसी दशा में जीवित रखते थे, जब उनके खून का बदला लेना होता था। अंत को शेख हसन अधीर हो तलवार म्यान से निकाल ली, और दबे पाँव उस कोठरी के द्वार पर आकर खड़ा हो गया, जिसमें दाऊद छिपा हुआ था। तलवार को दामन में छिपाकर उसने धीरे से द्वार खोला। दाऊद टहल रहा था। बूढे अरब का रौद्र रूप देखकर दाऊद उसके मनोवेग को ताड़ गया। उसे बूढ़े से सहानुभूति हो गई। उसने सोचा यह धर्म का दोष नहीं, जाति का दोष नहीं। मेरे पुत्र की किसी ने हत्या की होती, तो कदाचित मैं भी उसके खून का प्यासा हो जाता। यही मानव-प्रकृति है।
अरब ने कहा–दाऊद, तुम्हें मालूम है, बेटे की मौत का कितना गम होता है?
दाऊद–इसका अनुभव तो नहीं कर साकता हूँ। अगर मेरी जान से आपके उस गम का एक हिस्सा भी मिट सके, तो लीजिए, यह सिर हाजिर है। मैं इसे शौक से आपकी नजर करता हूँ। अपने दाऊद का नाम सुना होगा।
अरब–क्या पीटर का बेटा?
दाऊद–जी हाँ! मैं वही बदनसीब दाऊद हूँ। मैं केवल आपके बेटे का घातक ही नहीं, इसलाम का दुश्मन भी हूँ। मेरी जान लेकर आप जमाल के खून का बदला ही न लेंगें, बल्कि अपनी जाति और धर्म की सच्ची सेवा भी करेंगे।
शेख हसन ने गम्भीर भाव से कहा–दाऊद, मैंने तुम्हें माफ किया। मैं जानता हूँ। मुसलमानों के हाथों ईसाइयों को बहुत तकलीफें पहुँची हैं। लेकिन यह इसलाम का नहीं, मुसलमानों का कसूर है। विजय-गर्व ने मुसलमानों की मति हर ली है। हमारे पाक-नबी ने यह शिक्षा नहीं दी थी, जिस पर आज हम चल रहे हैं। वह स्वयं क्षमा और दया का सर्वोच्च आदर्श हैं। मैं इसलाम के नाम पर बट्टा न लगाऊँगा। मेरी ऊँटनी ले लो, और रातोंरात जहाँ तक भागा जाए, भागो। कहीं एक क्षण के लिए भी न ठहरना। अरबों को तुम्हारी बू भी मिल गई तो तुम्हारी जान की खैररियत नहीं। जाओ तुम्हें खुदाए-पाक घर पहुँचाएँ! बूढ़े शेख हसन और उसके बेटे जमाल के लिए खुदा से दुआ किया करना।
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