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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


दाऊद खैरियत से घर पहुँच गया; किन्तु अब वह दाऊद न था, जो इसलाम को जड़ से खोदकर फेंक देना चाहता था। उसके विचारों में गहरा परिवर्तन हो गया था। अब वह मुसलमानों का आदर करता और इसलाम का नाम इज्जत से लेता था।

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मुक्ति-मार्ग

सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर सुन्दरी को अपने गहनों पर और वैद्य को अपने सामने बैठे हुए रोगियों पर जो घमंड होता है, वही किसान को अपने खेतों को लहराते हुए देखकर होता है। झींगुर अपने ऊख को देखता है तो उस पर नशा छा जाता। तीन बीघे ऊख थी। इसके ६॰॰ रु. तो अनायास ही मिल जाएँगे। और जो कहीं भगवान ने डाँडी तेज कर दी, तो फिर क्या पूछना। दोनों बैल बुड्ढे हो गए। अबकी नई गोई बटेसर के मेले से ले आएगा। कहीं दो बीघे खेत और मिल गए, तो लिखा लेगा। रुपयों की क्या चिंता है। बनिए अभी से उसकी खुशामत करने लगे थे। ऐसा कोई न था, जिससे उसने गाँव में लड़ाई न की हो। वह अपने आगे किसी को कुछ समझता ही न था।

एक दिन संध्या समय वह अपने बेटे को गोद में लिये मटर की फलियाँ तोड़ रहा था। इतने में उसे भेड़ों का एक झुंड अपनी ओर आता दिखाई दिया। वह अपने मन में कहने लगा–इधर से भेड़ों के निकलने का रास्ता न था। क्या खेत की मेंड़ पर से भेड़ों का झुंड नहीं जा सकता था? भेड़ों को इधर से लाने की क्या जरूरत? वे खेत को कुचलेंगी, चरेंगी, इसका डाँड़ कौन देगा? मालूम होता है, बुद्धु गड़ेरिया है। बच्चा को घमंड हो गया है, तभी तो खेतों के बीच से भेड़ें लिए चला आता है। जरा इसकी ढिठाई तो देखो। देख रहा है कि मैं खड़ा हूँ, फिर भी भेड़ों को लौटाता नहीं। कौन मेरे साथ कभी रियायत की है कि मैं इसकी मुरौवत करूँ? अभी एक भेड़ा मोल माँगू तो पाँच रुपए ही सुनाएगा। सारी दुनिया में चार रुपए के कंबल बिकते हैं, पर यह तो पाँच रुपये से नीचे की बात ही नहीं करता।

इतने में भेंड़े खेत के पास आ गईं। झींगुर ने ललकारकर कहा–अरे, ये भेड़ कहाँ लिए आते हो? कुछ सूझता है कि नहीं?

बुद्धू नम्र भाव से बोला–महतो, डाँड़ पर से निकल जाएँगी। घूमकर जाऊँगा तो कोस भर का चक्कर पड़ेगा।

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