कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
आग किसने लगायी, यह खुला हुआ भेद था, पर किसी को कहने का साहस नहीं। प्राणहीन तर्क का मूल ही क्या! झींगुर का घर से निकलना मुश्किल हो गया। जहाँ जाता, ताने सुनने पड़ते। लोग प्रत्यक्ष कहते थे। यह आग तुमने लगवायी। तुम्हीं ने हमारा सर्वनाश किया। तुम्हीं मारे घमंड के धरती पर पैर न रखते थे। आपके आप गये, अपने साथ गाँव-भर को डुबो दिया। बुद्धू को न छेड़ते, तो आज क्यों यह दिन देखना पड़ता! झींगुर को अपनी बरबादी का इतना दुख न था, जितना इन जली-कटी बातों का! दिन भर घर में बैठा रहता।
पूस का महीना आया। जहाँ सारी रात कोल्हू चला करते थे, गुड़ की सुगंध उड़ती रहती थी, भट्टियां जलती रहती थीं, और लोग भट्टियों के सामने बैठे हुक्का पिया करते थे, वहाँ सन्नाटा छाया हुआ था। ठंड के मारे लोग साँझ ही से किवाड़े बंद पड़ रहते, और झींगुर को कोसते। माघ और भी कष्ट दायक था। ऊख केवल घनदाता ही नहीं, किसानों का जीवन दाता भी है। उसी के सहारे से किसानों का जाड़ा कटता है। गरम रस पीते हैं, ऊख की पत्तियाँ तापते हैं, उसके अगोड़े पशुओं को खिलाते हैं। गाँव के सारे कुत्ते जो रात को भट्टियों की राख में सोया करते थे ठंड से मर गए। कितने ही जानवर चारे के अभाव से चल बसे शीत का प्रकोप हुआ, और सारा गाँव खाँसी-बुखार में ग्रस्त हो गया। और यह सारी विपति झींगुर की करनी थी–अभागे, हत्यारे झींगुर की!
झींगुर ने सोचते-सोचते निश्चय किया कि बुद्व की दशा भी अपनी ही सी बनाऊँगा। उसके कारण मेरा सर्वनाश हो गया, और वह चैन की बंसी बजा रहा है ! मैं भी उसका सर्वनाश करूँगा!
जिस दिन इस घातक कलह का बीजारोपण हुआ, उसी दिन से बुद्धू ने इधर आना छोड़ दिया था। झींगुर ने उससे रब्त-जब्त बढ़ाना शुरू किया। वह बुद्धू को दिखाना चाहता था कि तुम्हारे ऊपर मुझे बिलकुल संदेह नहीं। एक दिन कम्बल लेने के बहाने गया, फिर दूध लेने के बहाने जाने लगा। बुद्धू उसका आदर सत्कार करता। चिलम तो आदमी दुश्मन को भी पिला देता है, वह उसे बिना दूध और शर्बत पिलाए न आने देता। झींगुर आजकल एक सन लपेटने वाली कल में मजदूरी करने जाया करता था। बहुधा कई-कई दिनों की मजदूरी इकट्टी मिलती थी। बुद्धू ही की तत्परता से झींगुर का रोजाना खर्च चलता था।
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