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कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


मुंशीजी–अच्छी बात है, तुम लोग रोटी-दाल खाना, गजी-गाढ़ा पहनना, मुझे अब हलुवे-पूरी की इच्छा है।

माता–यह अधर्म मुझसे न देखा जायगा। मैं गंगा में डूब मरूँगी।

पत्नी–तुम्हें ये सब काँटे बोना हैं, तो मुझे मायके पहुँचा दो। मैं अपने बच्चों को लेकर इस घर में नहीं रहूँगी।

मुंशीजी ने झुँझलाकर कहा–तुम लोगों की बुद्धि तो भाँग खा गई है। लाखों सरकारी नौकर रात-दिन दूसरो का गला दबा-दबाकर रिश्वतें लेते हैं। और चैन करते है। न उनके बाल-बच्चों को ही कुछ होता है, न उन्हीं को हैजा पकड़ता है। अधर्म उनको क्यों नहीं खा जाता, जो मुझी को खा जायगा! मैंने तो सत्यवादियों को सदा दुःख झेलते ही देखा है। मैंने जो कुछ किया है, उसका सुख लूँटूगा! तुम्हारे मन में जो आये, करो।

प्रातःकाल दफ्तर खुला तो कागजात सब गायब थे। मुंशी छक्कनलाल बौखलाए-से घर में गये और मालकिन से पूछा–क्या कागजात आपने उठवा लिये है? भानुकुँवरि ने कहा–मुझे क्या खबर! जहां आपने रखे होंगे, वहीं होंगे। फिर तो सारे घर में खलबली पड़ गई। पहरेदारों पर मार पड़ने लगी। भानुकुँवरि को तुरन्त मुंशी सत्यनारायण पर संदेह हुआ। मगर उनकी समझ में छक्कनलाल की सहायता के बिना यह काम होना असम्भव था। पुलिस में रपट हुई। एक ओझा नाम निकालने के लिए बुलाया गया। मौलवी साहब ने कुर्रा फेंका। ओझा ने नाम बताया, यह किसी पुराने बैरी का काम है। मौलवी साहब ने फर्माया, किसी घर के भेदिये ने यह हरकत की है। शाम तक यही दौड़-धूप रही। फिर यह सलाह होने लगी इन कागजात के बगैर मुकदमा कैसे चलेगा? पक्ष तो पहले ही निर्बल था। जो कुछ बल था, वह इसी बहीखाते का था। अब तो वे सबूत भी हाथ से गये। दावे में कुछ जान ही नहीं रही। मगर भानुकुँवरि ने कहा–बला से हार जायेंगे। हमारी चीज कोई छीन ले तो हमारा धर्म है कि उससे यथाशक्ति लड़ें। हारकर बैठे रहना कायरों का काम है। सेठजी (वकील) को इस दुर्घटना का समाचार मिला, तो उन्होंने भी यही कहा कि अब दावे में जरा भी जान नहीं है। केवल अनुमान और तर्क का भरोसा है। अदालत ने माना तो माना, नहीं तो हार माननी पड़ेगी। पर भानुकुँवरि ने एक न मानी। लखनऊ और इलाहाबाद से दो होशियार बैरिस्टर बुलवाए। मुकदमा शुरू हो गया।

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