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कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


दोनों ओर से मुकदमेबाजी की तैयारियाँ होने लगीं। एक तरफ न्याय का शरीर था; दूसरी ओर न्याय की आत्मा। प्रकृति को पुरुष से लड़ने का साहस हुआ था।

भानुकुँवरि ने लाला छक्कनलाल से पूछा–हमारा वकील कौन है?

छक्कनलाल ने इधर-उधर झाँककर कहा–वकील तो सेठजी हैं; पर सत्यनारायण ने उन्हें पहले से ही गांठ में रखा होगा। इस मुकदमे के लिए बड़े होशियार वकील की जरूरत है। मेहरा बाबू की आजकल खूब चल रही। हाकिमों की कलम पकड़ लेते हैं। बोलते हैं तो जैसे मोटरकार छूट गई। सरकार, और क्या कहें, कई आदमियों को फाँसी से उतार लिया है। उनके सामने कोई वकील जबान तो खोल ही नहीं सकता। सरकार कहें तो वही कर लिये जायँ।

छक्कनलाल की अत्युक्ति ने संदेह पैदा कर दिया। भानुकुँवरि ने कहा–नहीं पहले सेठ जी से पूछ लिया जाय। इसके बाद देखा जायगा। आप जाइए, उन्हें बुला लाइए।

छक्कनलाल अपनी तकदीर को ठोंकते हुए सेठ जी के पास गये। सेठजी पंडित भृगुदत्त के जीवन-काल ही से उनके कानून-सम्बन्धी सब काम किया करते थे! मुकदमें का हाल सुना, तो सन्नाटे में आ गए। सत्यनारायण को वह बड़ा नेकनीयत आदमी समझते थे। उनके पतन पर बड़ा खेद किया। उसी वक्त आये। भानुकुँवरि ने रो- रोकर उनसे अपनी विपत्ति की कथा कही और अपने दोनों लड़कों को उनके सामने खड़ा कर बोली–आप इन अनाथों की रक्षा कीजिए। इन्हें मैं आपको सौंपती हूँ।

सेठजी ने समझौते की बात छेड़ी–आपस में लड़ाई अच्छी नहीं ।

भानुकुँवरि–अन्यायी के साथ लड़ना अच्छा है।

सेठजी–पर हमारा पक्ष तो निर्बल है।

भानुकुँवरि फिर परदे से निकल आयी और फिर विस्मित होकर बोली–क्या हमारा पक्ष निर्बल है? दुनिया जानती है कि गाँव हमारा है। उसे हमसे कौन ले सकता है? नहीं, मैं सुलह कभी न करूँगी। आप कागजों को देखें। मेरे बच्चों की खातिर यह कष्ट उठाएं। आपका परिश्रम निष्फल न जायगा। सत्यनारायण की नीयत पहले खराब न थी। देखिए, जिस मिती में गाँव लिया गया है। उस मिती में ३॰ हजार का क्या खर्च दिखाया गया है! अगर उसने अपने नाम उधार लिया हो, तो देखिए, वार्षिक चुकाया गया है या नहीं। ऐसे नर-पिशाच से मैं कभी सुलह न करूँगी।

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