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कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


पांच बज गए, गोरेलाल अभी तक नहीं आये। ब्रजनाथ की आंख रास्ते की तरफ लगी हुई थी। हाथ में एक पत्र था, लेकिन पढ़ने में जी न लगता था। हर तीसरे मिनट रास्ते की ओर देखने लगते थे। लेकिन आज वेतन मिलने का दिन है। इसी कारण आने में देर हो रही है; आते ही होंगे। छह बजे। गोरेलाल का पता नहीं। कचहरी के कर्मचारी एक-एक करके चले आ रहे थे। ब्रजनाथ को कई बार धोखा हुआ। वे आ रहे हैं। जरूर वे ही हैं। वैसा ही अचकन है। वैसी ही टोपी। चाल भी वही है। इसी तरफ आ रहे हैं। अपने हृदय से एक बोझ-सा उतरता मालूम हुआ। लेकिन निकट आने पर ज्ञात हुआ कि कोई और है। आशा की कल्पित मूर्ति दुराशा में विलीन हो गई।

ब्रजनाथ का चित्त खिन्न होने लगा। वे एक बार कुरसी पर से उठे। बरामदे की चौखट पर खड़े होकर सड़क के दोनों तरफ निगाह दौड़ायी। कहीं पता नहीं।

दो-तीन बार दूर से आते हुए इक्कों को देखकर गोरेलाल का भ्रम हुआ। आकांक्षा की प्रबलता!

सात बजे। चिराग जल गए। सड़क पर अंधेरा छाने लगा। ब्रजनाथ सड़क पर उद्विग्न भाव से टहलने लगे। इरादा हुआ, गोरेलाल के घर चलूँ। उधर कदम बढ़ाए। लेकिन हृदय काँप रहा था कि कहीं वे रास्ते में आते हुए मिल जायँ, तो समझेंगे कि थोड़े से रुपये के लिए इतने व्याकुल हो गए। थोड़ी ही दूर गये कि किसी को आते देखा। भ्रम हुआ, गोरेलाल हैं, मुड़े और सीधे बरामदे में आकर दम लिया। लेकिन फिर वहीं धोखा! फिर वहीं भ्रान्ति! तब सोचने लगे कि इतनी देर क्यों हो रही है। क्या अभी तक वे कचहरी से न आये होंगे? ऐसा कदापि नहीं हो सकता। उनके दफ्तर वाले मुद्दत हुई, निकल गये। बस, दो बातें हो सकती हैं। या तो उन्होंने कल आने का निश्चय कर लिया, समझें होंगे कि रात को कौन जाय या जान-बूझकर बैठे रहे होंगे; देना न चाहते होंगे। उस समय उनकी गरज थी, इस समय मेरी गरज है। मैं ही किसी को क्यों न भेज दूँ, लेकिन किसे भेजूँ? मन्नू जा सकता है। सड़क ही पर मकान है। यह सोचकर कमरे में गये। लैम्प जलाया और पत्र लिखने बैठे, मगर आँखें द्वार ही की ओर लगी हुई थीं। अकस्मात् किसी के पैर की आहट सुनाई दी। तुरन्त पत्र को एक किताब के नीचे दबा लिया और बरामदे में चले आये। देखा तो पड़ोस का कुँजड़ा है, तार पढ़ाने आया है। उससे बोले–भाई, इस समय फुरसत नहीं है, थोड़ी देर में आना।

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