सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
गौस खाँ-हुजूर, वह लौंडा इन्तहा दर्जे का शरीर है। उसके मारे हम लोगों का गाँव में रहना दुश्वार हो गया है। रोज एक-न-एक तूफान खड़ा किये रहता है।
दूसरा चपरासी– हुजूर लोगों की गुलामी में उम्र कटी, लेकिन कभी ऐसी दुर्गति न हुई थी।
ईजाद हुसेन– हुजूर की रिआया-परवरी में कोई शक नहीं। हुक्काम को रहम-दिल होना ही चाहिए; लेकिन हक तो यह है कि बेगार बन्द हो जाय तो इन टके के आदमियों का किसी तरह गुजर ही न हो।
ज्वालासिंह– नहीं, मैं इन्हें तकलीफ नहीं देना चाहता। मेरी मंशा सिर्फ यह है कि रिआया पर बेजा सख्ती न हो। मैंने इन लोगों को जो हुक्म दिया है, उसमें उनकी जरूरतों का काफी लिहाज रखा है। मैं यह समझता कि सदर में यह लोग जिन चीजों के बगैर गुजर कर सकते हैं उनकी देहात में आकर क्यों जरूरत पड़ती है।
चपरासी– हुजूर, हम लोगों को जैसे चाहें रखे, आपके गुलाम हैं पर इसमें हुजूर की बेरोबी होती है।
गौस खाँ-जी हाँ, यह देहाती लोग उसे हाकिम ही नहीं समझते जो इनके साथ नरमी से पेश आये। हुजूर को हिन्दुस्तानी समझकर ही यह लोग ऐसी दिलेरी करते हैं। अँग्रेजी हुक्काम आते हैं तो कोई चूँ भी नहीं करता। अभी दो हफ्ते होते हैं, पादरी साहब तशरीफ लाये थे और हफ्ते भर रहे, लेकिन सारा गाँव हाथ बाँधे खड़ा रहता था।
ईजाद हुसेन– आप बिल्कुल दुरुस्त फरमाते हैं। हिन्दुस्तानी हुक्काम को यह लोग हाकिम ही नहीं, समझते, जब तक वह इनके साथ सख्ती न करें।
ज्वालासिंह ने अपनी मर्यादा बढ़ाने के लिए ही अँग्रेजी रहन-सहन ग्रहण किया था। वह अपने को किसी अँग्रेज से कम न समझते थे। रेलगाड़ी में अंग्रेजों के ही साथ बैठते थे। लोग अपनी बोलचाल में उन्हें साहब ही कहा करते थे। हिन्दुस्तानी समझना उन्हें गाली देना था। गौस खाँ और ईजाद हुसेन की बातें निशाने पर बैठ गयीं। अकड़कर बोले, अच्छा यह बात है तो मैं भी दिखा देता हूँ कि मैं किसी अँग्रेज से कम नहीं हूँ यह लोग भी समझेगे कि किसी हिन्दुस्तानी हाकिम से काम पड़ा था। अब तक तो मैं यही समझता था कि सारी खता हमीं लोगों की है। अब मालूम हुआ कि यह देहातियों की शरारत है। अहलमद साहब, आप हल्के के सब-इन्स्पेक्टर को रूबकार लिखिए कि वह फौरन इस मामले की तहकीकात करके अपनी रिपोर्ट पेश करें।
चपरासी– ज्यादा नहीं तो हुजूर इन लोगों से मुचलका तो जरूर ले ही लिया जाय।
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